उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 63 [एक शे’र तीन बह्र]
[A] मेरे एक मित्र ने
शबीना अदीब की ग़ज़ल भेजी जिसका मतलाऔर उसका बह्र 1212---212---122---1212---212--122 बताई
ख़ामोश लब हैं झुकीं हैं पलकें ,दिलों में उल्फ़त नई -नई है
अभी तकल्लुफ़ है गुफ़्तगू में ,अभी मोहब्बत नई-नई है
[B] मेरे एक दूसरे मित्र नें शंका-समाधान चाहा कि क्या
मफ़ाइलातुन---मफ़ाइलातुन----मफ़ाइलातुन--मफ़ाइलातुन
12122--------12122--------12122--------12122
बह्र हो सकती है ?
कृपया मार्ग दर्शन करें।
यह आलेख उन्हीं प्रश्नों के उत्तर में लिखा गया है । मैं चाहता हूँ कि इस मंच के पाठक गण भी इस विषय पर अपनी राय से मुझे वाक़िफ़ करायें ।
प्रश्न :
कष्ट दे रहा हूं।
क़मर जौनपुरी से आपका संपर्क.सूत्र मिला।
अभी कुछ शायर मित्रों के बीच बहस चली।
मफ़ाइलातुन मफ़ाइलातुन मफ़ाइलातुन मफ़ाइलातुन
12 122 x4
बहर.नहीं है।
उनका कहना है।
रजज़ मखबून मरफू मुखल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़उलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़उलुन
1212 212 122 1212 212 22 होती है।
हमारी गजल मतला है
हमारी मिल्लत के जिंदगी अब तमाम नक्शे बदल गये हैं।
बुझे बुझे से दिलों के अरमां जफ़ा की सूरत में ढल गये है।
12122x4
क्या सही.है मार्ग दर्शित करे़ं।
कष्ट को🙏
जबकि जनाब जोश मलीहा बादी, एवं जनाब अदम ने
12122x4 पर गजल पढ़ी हैं
उत्तर
जी भ्रम की कोई स्थिति नहीं है
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़उलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़उलुन
1212 212 122 1212 212 22 के
इस निज़ाम को हम 3-तरीक़ो से लिख सकते हैं
[क] इस बह्र का सही स्वरूप होगा
121 -22 /121 -22 /121- 22 /121-22
फ़ऊलु--फ़े’लुन/फ़ऊलु--फ़े’लुन / फ़ऊलु--फ़े’लुन /फ़ऊलु--फ़े’लुन
बह्र-ए-मुतक़ारिब मक़्बूज़ असलम मुसम्मन मुज़ाइफ़
[ख] 12122 /12122 /12122 /12122
मुफ़ाइलातुन /मुफ़ाइलातुन/मुफ़ाइलातुन/मुफ़ाइलातुन
बह्र-ए-जमील मुसम्मन सालिम
[ग] 121- 22 /121 -22 /121- 22 /121- 22
फ़ऊलु--फ़े’लुन/फ़ऊलु--फ़े’लुन / फ़ऊलु--फ़े’लुन /फ़ऊलु--फ़े’लुन
बह्र-ए-मुक्तज़िब मुसम्मन मख़्बून मरफ़ूअ’ मउख़्बून मरफ़ूअ’ मुसक्किन मुज़ाइफ़
अब इन तीनों पर कुछ बातचीत कर लेते हैं
[क] ---क्लासिकल अरूज़ की किताब में सिर्फ़ 5-हर्फ़ी और 7-हर्फ़ी रुक्न का ही ज़िक्र है । फ़ऊलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलातुन--मुफ़ाईलुन---मुसतफ़इलुन---मुफ़ाइलतुन---मु तफ़ाइलुन---मफ़ऊलातु [ जो दो सबब और एक वतद के मेल से बना है]
उनमें 8-हर्फ़ी रुक्न का ज़िक्र नहीं है यानी”मुफ़ाइलातुन’ [12122] नामक सालिम रुक्न का ज़िक्र नहीं है ।
मगर मुतक़ारिब में ’ फ़ऊलुन ’ [122] पर ज़िहाफ़ात के अमल से यह बह्र यानी 121---22/ 121-22/121--22/121-22 बनाई जा सकती है।
देखिए कैसे?
फ़ऊलुन [122] का मुज़ाहिफ़ मक़्बूज़ [ कब्ज़ ज़िहाफ़ लगा हुआ] होता है ’फ़ऊलु [121] --लाम मुतहर्रिक है यहाँ और
फ़ऊलुन [122] का मुज़ाहिफ़ असलम [ सलम ज़िहाफ़ लगा हुआ] होता है ’फ़े’लुन [22]
[121-22] क्या हुआ? मुतक़ारिब मक़्बूज़ असलम
तो फिर इसका ’मुसम्मन’ क्या होगा?
[121-22] / [121-22] यानी 4-रुक्न एक मिसरा में या 8-रुक्न एक शे’र में
तो फिर "मुसम्मन मुज़ाइफ़" क्या होगा ?
121-22] / [121-22] //121-22] / [121-22] --यानी 8-रुक्न एक मिसरा में और 16-रुक्न एक शे’र में । "मुज़ाइफ़’ मानी ही ’दो-गुना’ होता है [ ध्यान रहे ’मुज़ाहिफ़’---ज़िहाफ़ से बना है और मुज़ाइफ़ ---जाइफ़ से बना है । कन्फ़्यूज न हों।
यानी पूरी बहर हो गई
[121-22]- --[121-22]-- -[121-22]-- --[121-22]
छ]- [फ़ऊलु-फ़े’लुन]--- [फ़ऊलु-फ़े’लुन]---[फ़ऊलु-फ़े’लुन]
और इस बह्र का नाम होगा बह्र-ए-मुतक़ारिब मक़्बूज़ असलम मुसम्मन मुज़ाइफ़
[ख] मगर अरूज़ के नियम से 8-हर्फ़ी [ दो वतद और एक सबब के मेल से भी ] रुक्न बन सकते है । कोई मनाही नहीं है । कमाल अहमद सिद्दीक़ी साहब ने अपनी किताब "आहंग और अरूज़" में इस बात का ज़िक्र किया है । उनका कहना है कि ख़्वाजा नसीरुउद्दीन तौसी ने इस [फ़ऊलु-फ़े’लुन][121-22] को मिला कर एक सालिम रुक्न [12122--मुफ़ाइलातुन ] का नाम दिया [यानी मुफ़ा+इला+तुन = वतद-ए-मज्मुआ+ वतद-ए-मज्मुआ+ सबब-ए-ख़फ़ीफ़। कमाल अहमद सिद्दीक़ी साहब ने इस रुक्न से बनी बह्र का नाम "बह्र-ए-जामिल ’ रखा।
बस इसी दो वतद और एक सबब के उलट-फेर से आप ने 6-और भी मज़ीद सालिम रुक्न बनाए /दिखाए और इन मज़ीद 6-रुक्न का मुख़्तलिफ़ नाम भी दिया है । उर्दू की प्रचलित 19-बहर में इस बहर का नाम नहीं है। मगर अज रु-ए-अरूज़ मुमकिन है । सिद्दीक़ी साहब ने तो यहाँ तक कहा है कि अरूज़ियों को इस मसले पर ग़ौर फ़रमाना चाहिए। ख़ैर।
[ ग] बह्र-ए-मुक़्तज़िब ,उर्दू शायरी की उन 19- राइज़ बहूर में से एक बह्र है जिसका मूल अर्कान होता है " मफ़ऊलातु--मुसतफ़इलुन [ 2221---2212 ] जिसपर ज़िहाफ़ात लगाने से --निम्न बह्र भी बरामद हो सकती है
-121- 22 /121 -22 /121- 22 /121- 22
फ़ऊलु--फ़े’लुन/फ़ऊलु--फ़े’लुन / फ़ऊलु--फ़े’लुन /फ़ऊलु--फ़े’लुन
और डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब ने अपनी किताब मेराज-उल-अरूज़ में इस बह्र का नाम दिया है--- "बह्र-ए- मुक्तज़िब मुसम्मन मख़्बून मरफ़ूअ’ मख़्बून मरफ़ूअ’ मुसक्किन मुज़ाइफ़"
शकील बदायूनी साहब की एक बहुत ही मशहूर ग़ज़ल का दो अश’आर लगा रहा हूँ
लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकां से पहले
मुहब्बत आईना हो चुकी थी वज़ूद-ए-बज्म-ए-जहाँ से पहले
अज़ल से शायद लिखे हुए थे ’शकील’ किस्मत में जौर-ए-पैहम
खुली जो आँखें इस अंजुमन में नज़र मिली आसमाँ से पहले
अब आप बताए आप इसकी तक़्तीअ किस बह्र में करना चाहेंगे????
चलिए इसकी तक़्तीअ’ एक बहर में मैं कर देता हूँ
1 2 1/ 2 1 / 1 2 1 / 2 2 // 1 2 1 / 2 2 1 2 1 / 2 2 = 121-22/121-22//121-22/121-22
लतीफ़ /पर् दों /से थे नु /मायाँ //मकीं के /जल् वे /मकां से /पहले
1 2 1 -2 2 /1 2 1 /2 2 // 1 2 1 / 2 2 / 1 2 1 / 2 2 = 121-22/121/22//121-22/121-22
मुहब्बत आई /न: हो चु /की थी //वज़ूद-/बज मे / जहाँ से /पहले
एक बात मुहब्बत-आईना को हमने 212--22/1 पर क्यों लिया ?
सामान्यतया
मुहब्बत = मु हब् बत् वज़न फ़ऊलुन [1 2 2] के वज़न् पर् लेते है
आईना का ’अलिफ़् मद्’ मुहब्बत के -त- से वस्ल हो गया और वस्ल के कारण इसका -- तलफ़्फ़ुज़-- -मु +हब+ ब--ता ई = 1 2 1-22 का हो गया और वज़न 121-22 फ़ऊलु-फ़े’लुन पर आ गया जो अज रु-ए-अरूज़ दुरुस्त है और बह्र की इस मुक़ाम पर माँग भी है
आप चाहे इस बह्र का जो नाम दे दें।
मैने अरूज़ के नुक्त-ए-नज़र बात साफ़ कर दी । अब आप पर निर्भर करता है कि आप उपर्युक्त तीनों में से किस बह्र में शायरी करते है -तीनों बह्र सही और दुरुस्त है ---वज़न बराबर रहेगा।
आशा करता हूँ कि मैने अपनी बात स्पष्ट कर दी होगी
{नोट- असातिज़ा [ गुरुवरों ] से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कहीं कुछ ग़लतबयानी हो गई हो गई हो तो बराये मेहरबानी निशान्दिही ज़रूर फ़र्माएं ताकि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूँ --सादर ]
-आनन्द.पाठक-
Mb 8800927181ं
akpathak3107 @ gmail.com
[A] मेरे एक मित्र ने
शबीना अदीब की ग़ज़ल भेजी जिसका मतलाऔर उसका बह्र 1212---212---122---1212---212--122 बताई
ख़ामोश लब हैं झुकीं हैं पलकें ,दिलों में उल्फ़त नई -नई है
अभी तकल्लुफ़ है गुफ़्तगू में ,अभी मोहब्बत नई-नई है
[B] मेरे एक दूसरे मित्र नें शंका-समाधान चाहा कि क्या
मफ़ाइलातुन---मफ़ाइलातुन----मफ़ाइलातुन--मफ़ाइलातुन
12122--------12122--------12122--------12122
बह्र हो सकती है ?
कृपया मार्ग दर्शन करें।
यह आलेख उन्हीं प्रश्नों के उत्तर में लिखा गया है । मैं चाहता हूँ कि इस मंच के पाठक गण भी इस विषय पर अपनी राय से मुझे वाक़िफ़ करायें ।
प्रश्न :
कष्ट दे रहा हूं।
क़मर जौनपुरी से आपका संपर्क.सूत्र मिला।
अभी कुछ शायर मित्रों के बीच बहस चली।
मफ़ाइलातुन मफ़ाइलातुन मफ़ाइलातुन मफ़ाइलातुन
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बहर.नहीं है।
उनका कहना है।
रजज़ मखबून मरफू मुखल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़उलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़उलुन
1212 212 122 1212 212 22 होती है।
हमारी गजल मतला है
हमारी मिल्लत के जिंदगी अब तमाम नक्शे बदल गये हैं।
बुझे बुझे से दिलों के अरमां जफ़ा की सूरत में ढल गये है।
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क्या सही.है मार्ग दर्शित करे़ं।
कष्ट को🙏
जबकि जनाब जोश मलीहा बादी, एवं जनाब अदम ने
12122x4 पर गजल पढ़ी हैं
उत्तर
जी भ्रम की कोई स्थिति नहीं है
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़उलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़उलुन
1212 212 122 1212 212 22 के
इस निज़ाम को हम 3-तरीक़ो से लिख सकते हैं
[क] इस बह्र का सही स्वरूप होगा
121 -22 /121 -22 /121- 22 /121-22
फ़ऊलु--फ़े’लुन/फ़ऊलु--फ़े’लुन / फ़ऊलु--फ़े’लुन /फ़ऊलु--फ़े’लुन
बह्र-ए-मुतक़ारिब मक़्बूज़ असलम मुसम्मन मुज़ाइफ़
[ख] 12122 /12122 /12122 /12122
मुफ़ाइलातुन /मुफ़ाइलातुन/मुफ़ाइलातुन/मुफ़ाइलातुन
बह्र-ए-जमील मुसम्मन सालिम
[ग] 121- 22 /121 -22 /121- 22 /121- 22
फ़ऊलु--फ़े’लुन/फ़ऊलु--फ़े’लुन / फ़ऊलु--फ़े’लुन /फ़ऊलु--फ़े’लुन
बह्र-ए-मुक्तज़िब मुसम्मन मख़्बून मरफ़ूअ’ मउख़्बून मरफ़ूअ’ मुसक्किन मुज़ाइफ़
अब इन तीनों पर कुछ बातचीत कर लेते हैं
[क] ---क्लासिकल अरूज़ की किताब में सिर्फ़ 5-हर्फ़ी और 7-हर्फ़ी रुक्न का ही ज़िक्र है । फ़ऊलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलातुन--मुफ़ाईलुन---मुसतफ़इलुन---मुफ़ाइलतुन---मु तफ़ाइलुन---मफ़ऊलातु [ जो दो सबब और एक वतद के मेल से बना है]
उनमें 8-हर्फ़ी रुक्न का ज़िक्र नहीं है यानी”मुफ़ाइलातुन’ [12122] नामक सालिम रुक्न का ज़िक्र नहीं है ।
मगर मुतक़ारिब में ’ फ़ऊलुन ’ [122] पर ज़िहाफ़ात के अमल से यह बह्र यानी 121---22/ 121-22/121--22/121-22 बनाई जा सकती है।
देखिए कैसे?
फ़ऊलुन [122] का मुज़ाहिफ़ मक़्बूज़ [ कब्ज़ ज़िहाफ़ लगा हुआ] होता है ’फ़ऊलु [121] --लाम मुतहर्रिक है यहाँ और
फ़ऊलुन [122] का मुज़ाहिफ़ असलम [ सलम ज़िहाफ़ लगा हुआ] होता है ’फ़े’लुन [22]
[121-22] क्या हुआ? मुतक़ारिब मक़्बूज़ असलम
तो फिर इसका ’मुसम्मन’ क्या होगा?
[121-22] / [121-22] यानी 4-रुक्न एक मिसरा में या 8-रुक्न एक शे’र में
तो फिर "मुसम्मन मुज़ाइफ़" क्या होगा ?
121-22] / [121-22] //121-22] / [121-22] --यानी 8-रुक्न एक मिसरा में और 16-रुक्न एक शे’र में । "मुज़ाइफ़’ मानी ही ’दो-गुना’ होता है [ ध्यान रहे ’मुज़ाहिफ़’---ज़िहाफ़ से बना है और मुज़ाइफ़ ---जाइफ़ से बना है । कन्फ़्यूज न हों।
यानी पूरी बहर हो गई
[121-22]- --[121-22]-- -[121-22]-- --[121-22]
छ]- [फ़ऊलु-फ़े’लुन]--- [फ़ऊलु-फ़े’लुन]---[फ़ऊलु-फ़े’लुन]
और इस बह्र का नाम होगा बह्र-ए-मुतक़ारिब मक़्बूज़ असलम मुसम्मन मुज़ाइफ़
[ख] मगर अरूज़ के नियम से 8-हर्फ़ी [ दो वतद और एक सबब के मेल से भी ] रुक्न बन सकते है । कोई मनाही नहीं है । कमाल अहमद सिद्दीक़ी साहब ने अपनी किताब "आहंग और अरूज़" में इस बात का ज़िक्र किया है । उनका कहना है कि ख़्वाजा नसीरुउद्दीन तौसी ने इस [फ़ऊलु-फ़े’लुन][121-22] को मिला कर एक सालिम रुक्न [12122--मुफ़ाइलातुन ] का नाम दिया [यानी मुफ़ा+इला+तुन = वतद-ए-मज्मुआ+ वतद-ए-मज्मुआ+ सबब-ए-ख़फ़ीफ़। कमाल अहमद सिद्दीक़ी साहब ने इस रुक्न से बनी बह्र का नाम "बह्र-ए-जामिल ’ रखा।
बस इसी दो वतद और एक सबब के उलट-फेर से आप ने 6-और भी मज़ीद सालिम रुक्न बनाए /दिखाए और इन मज़ीद 6-रुक्न का मुख़्तलिफ़ नाम भी दिया है । उर्दू की प्रचलित 19-बहर में इस बहर का नाम नहीं है। मगर अज रु-ए-अरूज़ मुमकिन है । सिद्दीक़ी साहब ने तो यहाँ तक कहा है कि अरूज़ियों को इस मसले पर ग़ौर फ़रमाना चाहिए। ख़ैर।
[ ग] बह्र-ए-मुक़्तज़िब ,उर्दू शायरी की उन 19- राइज़ बहूर में से एक बह्र है जिसका मूल अर्कान होता है " मफ़ऊलातु--मुसतफ़इलुन [ 2221---2212 ] जिसपर ज़िहाफ़ात लगाने से --निम्न बह्र भी बरामद हो सकती है
-121- 22 /121 -22 /121- 22 /121- 22
फ़ऊलु--फ़े’लुन/फ़ऊलु--फ़े’लुन / फ़ऊलु--फ़े’लुन /फ़ऊलु--फ़े’लुन
और डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब ने अपनी किताब मेराज-उल-अरूज़ में इस बह्र का नाम दिया है--- "बह्र-ए- मुक्तज़िब मुसम्मन मख़्बून मरफ़ूअ’ मख़्बून मरफ़ूअ’ मुसक्किन मुज़ाइफ़"
शकील बदायूनी साहब की एक बहुत ही मशहूर ग़ज़ल का दो अश’आर लगा रहा हूँ
लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकां से पहले
मुहब्बत आईना हो चुकी थी वज़ूद-ए-बज्म-ए-जहाँ से पहले
अज़ल से शायद लिखे हुए थे ’शकील’ किस्मत में जौर-ए-पैहम
खुली जो आँखें इस अंजुमन में नज़र मिली आसमाँ से पहले
अब आप बताए आप इसकी तक़्तीअ किस बह्र में करना चाहेंगे????
चलिए इसकी तक़्तीअ’ एक बहर में मैं कर देता हूँ
1 2 1/ 2 1 / 1 2 1 / 2 2 // 1 2 1 / 2 2 1 2 1 / 2 2 = 121-22/121-22//121-22/121-22
लतीफ़ /पर् दों /से थे नु /मायाँ //मकीं के /जल् वे /मकां से /पहले
1 2 1 -2 2 /1 2 1 /2 2 // 1 2 1 / 2 2 / 1 2 1 / 2 2 = 121-22/121/22//121-22/121-22
मुहब्बत आई /न: हो चु /की थी //वज़ूद-/बज मे / जहाँ से /पहले
एक बात मुहब्बत-आईना को हमने 212--22/1 पर क्यों लिया ?
सामान्यतया
मुहब्बत = मु हब् बत् वज़न फ़ऊलुन [1 2 2] के वज़न् पर् लेते है
आईना का ’अलिफ़् मद्’ मुहब्बत के -त- से वस्ल हो गया और वस्ल के कारण इसका -- तलफ़्फ़ुज़-- -मु +हब+ ब--ता ई = 1 2 1-22 का हो गया और वज़न 121-22 फ़ऊलु-फ़े’लुन पर आ गया जो अज रु-ए-अरूज़ दुरुस्त है और बह्र की इस मुक़ाम पर माँग भी है
आप चाहे इस बह्र का जो नाम दे दें।
मैने अरूज़ के नुक्त-ए-नज़र बात साफ़ कर दी । अब आप पर निर्भर करता है कि आप उपर्युक्त तीनों में से किस बह्र में शायरी करते है -तीनों बह्र सही और दुरुस्त है ---वज़न बराबर रहेगा।
आशा करता हूँ कि मैने अपनी बात स्पष्ट कर दी होगी
{नोट- असातिज़ा [ गुरुवरों ] से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कहीं कुछ ग़लतबयानी हो गई हो गई हो तो बराये मेहरबानी निशान्दिही ज़रूर फ़र्माएं ताकि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूँ --सादर ]
-आनन्द.पाठक-
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