Monday, June 1, 2020

उर्दू बह्र पर एक बातचीत ; क़िस्त 68 [ एक सामान्य बातचीत 01 ]

{नोट--मेरे एक मित्र ने अरूज़ के मुतल्लिक़ एक सवाल किया था ,यह आलेख उसी सन्दर्भ  [संशोधित और परिवर्धित रूप ] में  लिखा गया है  जिससे अन्य मित्रगण भी मुस्तफ़ीद [लाभान्वित ] हो सकें 

्सवाल ---
आदरणीय आदाब। 
होली की अग्रिम बधाईयॉ। 
कृपया मार्ग दर्शन करें। 
अधिकार, पुरुषोत्तम, गिरि, दुहिता, लघु जैसे शव्दों में आगे के दो लघुओं को १+१= २ मात्रा करके मुफरद बहरों के २ के स्थान पर लिखा जा सकता है क्या? कृपया कारण भी बताएँ।

जवाब --
आ0  ख़ान साहब
होली की बधाई के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद।

आप के सवाल के दो पहलू है

एक  --हिन्दी छन्द-शास्त्र का
दूसरा --  [उर्दू में ] अरूज़ का

समस्या यहीं है
 जब हम दोनो पहलू को एक साथ मिला कर  देखते हैं ,वहीं से ख़ल्त मल्त शुरु  हो जाता है। मेरा मानना है --हिन्दी की काव्य विधायें हिन्दी छन्द शास्त्र से देखी और परखी जाएँ और उर्दू के अस्नाफ़-ए-सुखन
उर्दू अरूज़ के नुक्त-ए-नज़र ्से देखें जाएँ । छन्द शास्त्र का व्याकरण अलग है और ग़ज़ल का व्याकरण अलग है । हमारे कुछ हिन्दी के साथियों ने दोनों विधाऒं के एक मंच पर लाने का प्रयास कर रहें है । कुँअर बेचैन साह्ब ने ’ग़ज़ल का व्याकरण ’ किताब में इस दिशा में एक प्रयास किया गया है। उन्होने उर्दू बह्र के कुछ हिन्दी नाम भी सुझाएँ हैं ।कुछ लोगों ने रुक्न का हिंदी नाम ’मापनी’ भी दिया है।परन्तु यह बहुत मान्यता प्राप्त नहीं कर सकी है।

हिन्दी छन्द शास्त्र में---मात्रा की गणना करते है /लघु/ह्रस्व -दीर्घ की मात्रा से करते है ।हिन्दी में जैसा बोलते हैं वैसा ही लिखते है और वैसा ही गणना करते है।
परन्तु  अरूज़ में  हर्फ़/लफ़्ज़ का वज़न  तलफ़्फ़ुज़ के आधार पर [नातिक़ हर्फ़, ग़ैर नातिक़ हर्फ़ यानी मलफ़ूज़ी और ग़ैर मल्फ़ूज़ी हर्फ़ ,हरकत. साकिन हर्फ़ ,मक्तूबी ,ग़ैर मक़्तूबी हर्फ़, ] के आधार पर करते हैं। रुक्न की माँग  पर वज़न निकालते है .ज़रूरत पड़ती है तो  हर्फ़ के वज़न गिराते भी हैं
]
उर्दू में ऐसे बहुत से हर्फ़ ऐसे हैं जो लिखते तो  है [जिन्हे मक़्तूबी  यानी किताबत किया हुआ ,लिखा हुआ कहते हैं ]मगर तलफ़्फ़ुज़ में नहीं आता ।जैसे ’ख़्वाब’ में ’वाव’ तलफ़्फ़ुज़ में नहीं आता तो तक़्तीअ में उसका वज़न नहीं लेते।

उर्दू में 1+1 को 2 नहीं मानते ।  अगर ऐसा होता भी है  तो वो "तस्कीन-ए-औसत"  की  अमल से ऐसा होता है जिसे हम हिन्दी वाले समझते हैं कि उर्दू में 1+1=2 होता है

उदाहरण
उर्दू में एक  रुक्न  है ’ फ़ाइलुन ’ -बह्र-ए-मुतदारिक का बुनियादी रुक्न है । इस सालिम रुक्न पर अगर "ख़ब्न’ का ज़िहाफ़ लगा दें तो मुज़ाहिफ़ शकल " फ़ अ’ लुन "[ 1 1 2 ] हासिल  होगा । इस "फ़अ’लुन " [1 1 2 ] जिसमे [ फ़े--ऐन--लाम तीन मुतहर्रिक एक साथ आ गए हैं और तस्कीन-ए-औसत की अमल से बीच वाला  मुतहर्रिक [यानी - ऐन- को] ’साकिन’ कर देते हैं तो यही 1 1 2 अब  फ़ अ’ लुन [ यानी -ऐन- अब साकिन हो गया इस अमल से ] 2 2  हो जायेगा । बस यहीं से हम समझ लेते है ं कि उर्दू में ’दो लघु [1 +1 ]मिल कर  2 हो जाता है ।अरे  1+1 यहाँ 2  हुआ तो ज़रूर ,मगर तस्कीन के अमल से हुआ जो हिन्दी के छन्द-शास्त्र से बिलकुल मुख्तलिफ़ [अलग]  है। यह विषय दोनो ही भाषाओं में  ख़ुद एक तवील मौज़ू है ।
अब एक उदाहरण और देखते हैं
आप जानते हैं कि उर्दू अर्कान में दो रुक्न ऐसे है जिसमे  -1 1- आता है
मु त फ़ाइलुन [ 1 1 2 1 2 ] --बह्र-ए-कामिल का बुनियादी रुक्न है
और
मुफ़ा इ ल तुन [ 1 2 1 1 2 ]--बह्र-ए-वाफ़िर का बुनियादी रुक्न है
अगर आप के सवाल के मुताबिक़ "दो लघुओं को १+१= २ मात्रा करके मुफरद बहरों के २ के स्थान पर " लिखें तो क्या होगा ?
मु त फ़ा इलुन [ 1 1 2 1 2] -- 2  2 1 2 [ मुस तफ़ इलुन ] हो जायेगा जो बह्र-ए- रजज़ का बुनियादी रुक्न है -----जो सही नहीं होगा ।इससे तो बह्र में मुबहम [ भ्रम] पैदा हो जायेगा जो उचित नहीं है । इसी प्रकार
मुफ़ा  इ ल तुन [ 12 1 1 2 ] --1 2  2  2 [ मफ़ा ईलुन     ] हो जायेगा जो बह्र-ए-हज़ज  का बुनियादी रुक्न है ---जो सही नहीं होगा । इस से तो भ्रम की स्थिति पैदा हो जाएगी जो उचित नहीं है

अब आप कहेंगे इन दोनों अर्कान पर ’तसकीन-ए-औसत’ का अमल कर के  1 +1  को 2 कर देते है । नहीं वो भी नही कर सकते हैं। कारण कि तस्कीन-ए-औसत का अमल हमेशा ’मुज़ाहिफ़ रुक्न [ वह रुक्न जिस पर ज़िहाफ़ लगा हुआ हो। पर होता है । सालिम रुक्न पर कभी नहीं होता ।

हाँ यदि आप काम चलाऊ जवाब चाहते है तो मेरे ख़याल से

हिन्दी में  जैसा लिखते है
वैसा बोलते हैं  तो  उर्दू में जैसा बोलेंगे
अधिकार =  1 1 2 1 2 2 1
पुरुषोत्तम = 1 1 2 2 1          2 2 2 1
गिरि        =1 1  2

अब आप तय करें कि शे’र-ओ-सुखन के लिए कौन सा विधि अपनायेंगे----हिन्दी का छन्द-शास्त्र या उर्दू का अरूज़ ?
मेरी राय तो यह है
1- उर्दू के शे’र-ओ-सुखन - उर्दू के अरूज़ की नुक्त-ए-नज़र से देखी जाए
2- हिन्दी के छन्द "हिंदी के छ्न्द शास्त्र’ के दॄष्टिकोण से देखा जाए
3- अरूज़ के अर्कान को 1 1 2 2 1 जैसे अलामात से नहीं बल्कि उनके नाम से जैसे फ़े’लुन--फ़ाइलुन---मफ़ाईलुन----आदि के नामों से पढ़ा और समझा जाए तो बेहतर

{नोट- असातिज़ा [ गुरुवरों ] से दस्तबस्ता  गुज़ारिश  है कि अगर कहीं कुछ ग़लतबयानी हो गई हो गई हो तो बराये मेहरबानी  निशान्दिही ज़रूर फ़र्माएं  ताकि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूँ --सादर ]

-आनन्द.पाठक-
Mb                 8800927181ं
akpathak3107 @ gmail.com

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