उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त--- [ सामान्य बातचीत ]
[ नोट - वैसे तो यह बातचीत उर्दू बह्र के मुतल्लिक़ तो नहीं है --शे’र-ओ-सुखन पर एक सामान्य बातचीत ही है
मगर अक़्सात के सिलसिले को क़ायम रखते हुए इसका क़िस्त नं0 दिया है कि मुस्तक़बिल में आप को इस क़िस्त
को ढूँढने में सहूलियत हो ]
उर्दू शायरी में या शे’र में आप ने --पे --या -पर-- के -या कर का प्रयोग होते हुए देखा होगा ।
आज इसी पर बात करते हैं
मेरे एक मित्र ने अपने चन्द अश’आर भेंजे । कुछ टिप्पणी भी की । ये अश’आर बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ में थे ।
-------------------
2122-- 1212-- 22/112
हँस कर भी मिला करे कोई
मेरे ग़म की दवा करे कोई।
छोङ के वो चला गया मुझको ,
लौटने की दुआ करे कोई।
जिस पर मैने टिप्पणी की थी
--हँस "कर" भी--- [ -कर की जगह -के- कर लें ]
---छोड़ ’के’ वो चला -- [के- की जगह -कर- कर लें ]
मेरे एक मित्र ने पूछा ’क्यों ?
यह बातचीत उसी सन्दर्भ में हो रही है ।
-----------------
3- इसी मंच पर [ शायद ]बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ के बारे में एक बातचीत की थी और ग़ालिब के एक ग़ज़ल
’दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है -- जो इसी बह्र में है ,पर भी चर्चा की थी । हालांकि इस बह्र के मुतल्लिक़
और भी कुछ बातें थी जिस पर चर्चा नहीं कर सका था । इंशा अल्लाह ,कभी मुनासिब मुक़ाम पर फिर चर्चा कर लेंगे
अब इन अश’आर की तक़्तीअ’ पर आते है--
2 2 2 / 1 2 1 2 / 2 2
हँस कर भी /मिला करे/ कोई =
2 1 2 2 / 1 2 1 2 / 2 2
मेरे ग़म की /दवा करे /कोई।
2 1 2 2 / 1 2 1 2 / 2 2
छोङ के वो/ चला गया /मुझको ,
2 1 2 2 / 1 2 1 2 / 2 2
लौटने की /दुआ करे /कोई।
पहले शे’र के सदर के मुक़ाम पर फ़ाइलातुन [ 2122] या फ़इ्लातुन [ 1 1 2 2 ] नहीं आ रहा है जब कि आना चाहिए था ।अत:
शे’र बह्र से ख़ारिज़ है ।
-पर- और -कर- यह दोनॊ लफ़्ज़ खुल कर अपनी आवाज़ देते है यानी तलफ़्फ़ुज़ एलानिया होता है और -2- के वज़न पर लेते है ।
यहाँ -के [ यहां -के- संबंध कारक नहीं है -जैसे राम के पिता --आप के घर ]
बल्कि यह -कर - का वैकल्पिक प्रयोग है । यहाँ -पे-कहना बेहतर कि -के- कहना बेहतर का सवाल नहीं
साधारण बातचीत और नस्र में प्राय: -कर- और -पर- ही बोलते हैं । दोनो के अर्थ भाव बिलकुल एक है ।
मगर पर शायरी में वज़न के लिहाज़ से यह दोनो ’मुख़तलिफ़’ हैं
। -के - अपना वज़न [-1-[ मुतहर्रिक ] और -2-[ सबब ] बह्र की माँग पर दोनों ही धारण कर सकता है
लेकिन - कर- /-पर- कभी -1- का वज़न धारण नहीं कर सकता । अत: जहाँ -2- के वज़न की ज़रूरत है वहाँ पर आप के पास
दोनों विकल्प मौज़ूद है मगर - कर/-पर- -- का प्रयोग ही वरेण्य है ।
जहाँ -1- की ज़रूरत है वहाँ -के-/-पे- का ही प्रयोग उचित है । बाक़ी तो शायर की मरजी है ।
हँस कर भी ---/ में एक सबब [2] कम है अत: चलिए फिलहाल इसे -तो- से भर देते हैं । यह फ़ाइलातुन [2 1 2 2 ] तो नहीं हुआ ।
/हँस कर भी तो / कर देते है । -तो - से वज़न [ 2 2 2 2 ] वज़न हो गया --जो ग़लत हो गया ।
फिर? -
कर [2]- को -के [1 ] कर देते हैं । विकल्प मौजूद है ।आप के पास
/हँस के भी तो /--- से 2 1 2 2 =फ़ाइलातुन = अब सही हो गया } लेकिन -तो- को यहाँ मैने भर्ती के तौर पर डाला था । जी बिल्कुल दुरुस्त । ऐसे लफ़्ज़ को
’भरती का लफ़्ज़ " ही कहते है । भरती के शे’र और भरती के लफ़्ज़ -पर किसी और मुक़ाम पर बात करेंगे ।
तो फिर ?
कुछ नहीं --
इसे यूँ कर देते है
/मुस्करा कर / = मुस-क-रा -कर /= 2 1 2 2 == फ़ाइलातुन= यह भी वज़न सही है । विकल्प आप के पास है --मरजी आप की।
इसी प्रकार
-/छोड़ के वो / = 2 1 2 2 = कोई कबाहत नहीं =दुरुस्त है ।
मगर आप के पास
-के [2 ]- बजाय -कर [2] का दोनों विकल्प मौज़ूद है । कम से कम --कर - खुल कर साफ़ साफ़ आवाज़ तो देगा । और विकल्प भी है आप के पास । अपनी अपनी पसन्द है । -इस मुकाम पर -कर-
ही वरेण्य है -अच्छा लगता । बाक़ी शायर की मरजी ।
यानी
/ छोड़ कर वो / 2 1 2 2 = फ़ाइलातुन =
यह सब मेरी ’राय’ है कोई "बाध्यता " नहीं और नही अरूज़ में ऐसा कूछ लिखा ही है ।
सादर
[ असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कोई ग़लत बयानी हो गई हो तो बराये मेहरबानी निशान दिही फ़र्मा देंगे ताकि आइन्दा खुद को दुरुस्त कर सकूँ ।
-आनन्द.पाठक-
[ नोट - वैसे तो यह बातचीत उर्दू बह्र के मुतल्लिक़ तो नहीं है --शे’र-ओ-सुखन पर एक सामान्य बातचीत ही है
मगर अक़्सात के सिलसिले को क़ायम रखते हुए इसका क़िस्त नं0 दिया है कि मुस्तक़बिल में आप को इस क़िस्त
को ढूँढने में सहूलियत हो ]
उर्दू शायरी में या शे’र में आप ने --पे --या -पर-- के -या कर का प्रयोग होते हुए देखा होगा ।
आज इसी पर बात करते हैं
मेरे एक मित्र ने अपने चन्द अश’आर भेंजे । कुछ टिप्पणी भी की । ये अश’आर बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ में थे ।
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2122-- 1212-- 22/112
हँस कर भी मिला करे कोई
मेरे ग़म की दवा करे कोई।
छोङ के वो चला गया मुझको ,
लौटने की दुआ करे कोई।
जिस पर मैने टिप्पणी की थी
--हँस "कर" भी--- [ -कर की जगह -के- कर लें ]
---छोड़ ’के’ वो चला -- [के- की जगह -कर- कर लें ]
मेरे एक मित्र ने पूछा ’क्यों ?
यह बातचीत उसी सन्दर्भ में हो रही है ।
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3- इसी मंच पर [ शायद ]बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ के बारे में एक बातचीत की थी और ग़ालिब के एक ग़ज़ल
’दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है -- जो इसी बह्र में है ,पर भी चर्चा की थी । हालांकि इस बह्र के मुतल्लिक़
और भी कुछ बातें थी जिस पर चर्चा नहीं कर सका था । इंशा अल्लाह ,कभी मुनासिब मुक़ाम पर फिर चर्चा कर लेंगे
अब इन अश’आर की तक़्तीअ’ पर आते है--
2 2 2 / 1 2 1 2 / 2 2
हँस कर भी /मिला करे/ कोई =
2 1 2 2 / 1 2 1 2 / 2 2
मेरे ग़म की /दवा करे /कोई।
2 1 2 2 / 1 2 1 2 / 2 2
छोङ के वो/ चला गया /मुझको ,
2 1 2 2 / 1 2 1 2 / 2 2
लौटने की /दुआ करे /कोई।
पहले शे’र के सदर के मुक़ाम पर फ़ाइलातुन [ 2122] या फ़इ्लातुन [ 1 1 2 2 ] नहीं आ रहा है जब कि आना चाहिए था ।अत:
शे’र बह्र से ख़ारिज़ है ।
-पर- और -कर- यह दोनॊ लफ़्ज़ खुल कर अपनी आवाज़ देते है यानी तलफ़्फ़ुज़ एलानिया होता है और -2- के वज़न पर लेते है ।
यहाँ -के [ यहां -के- संबंध कारक नहीं है -जैसे राम के पिता --आप के घर ]
बल्कि यह -कर - का वैकल्पिक प्रयोग है । यहाँ -पे-कहना बेहतर कि -के- कहना बेहतर का सवाल नहीं
साधारण बातचीत और नस्र में प्राय: -कर- और -पर- ही बोलते हैं । दोनो के अर्थ भाव बिलकुल एक है ।
मगर पर शायरी में वज़न के लिहाज़ से यह दोनो ’मुख़तलिफ़’ हैं
। -के - अपना वज़न [-1-[ मुतहर्रिक ] और -2-[ सबब ] बह्र की माँग पर दोनों ही धारण कर सकता है
लेकिन - कर- /-पर- कभी -1- का वज़न धारण नहीं कर सकता । अत: जहाँ -2- के वज़न की ज़रूरत है वहाँ पर आप के पास
दोनों विकल्प मौज़ूद है मगर - कर/-पर- -- का प्रयोग ही वरेण्य है ।
जहाँ -1- की ज़रूरत है वहाँ -के-/-पे- का ही प्रयोग उचित है । बाक़ी तो शायर की मरजी है ।
हँस कर भी ---/ में एक सबब [2] कम है अत: चलिए फिलहाल इसे -तो- से भर देते हैं । यह फ़ाइलातुन [2 1 2 2 ] तो नहीं हुआ ।
/हँस कर भी तो / कर देते है । -तो - से वज़न [ 2 2 2 2 ] वज़न हो गया --जो ग़लत हो गया ।
फिर? -
कर [2]- को -के [1 ] कर देते हैं । विकल्प मौजूद है ।आप के पास
/हँस के भी तो /--- से 2 1 2 2 =फ़ाइलातुन = अब सही हो गया } लेकिन -तो- को यहाँ मैने भर्ती के तौर पर डाला था । जी बिल्कुल दुरुस्त । ऐसे लफ़्ज़ को
’भरती का लफ़्ज़ " ही कहते है । भरती के शे’र और भरती के लफ़्ज़ -पर किसी और मुक़ाम पर बात करेंगे ।
तो फिर ?
कुछ नहीं --
इसे यूँ कर देते है
/मुस्करा कर / = मुस-क-रा -कर /= 2 1 2 2 == फ़ाइलातुन= यह भी वज़न सही है । विकल्प आप के पास है --मरजी आप की।
इसी प्रकार
-/छोड़ के वो / = 2 1 2 2 = कोई कबाहत नहीं =दुरुस्त है ।
मगर आप के पास
-के [2 ]- बजाय -कर [2] का दोनों विकल्प मौज़ूद है । कम से कम --कर - खुल कर साफ़ साफ़ आवाज़ तो देगा । और विकल्प भी है आप के पास । अपनी अपनी पसन्द है । -इस मुकाम पर -कर-
ही वरेण्य है -अच्छा लगता । बाक़ी शायर की मरजी ।
यानी
/ छोड़ कर वो / 2 1 2 2 = फ़ाइलातुन =
यह सब मेरी ’राय’ है कोई "बाध्यता " नहीं और नही अरूज़ में ऐसा कूछ लिखा ही है ।
सादर
[ असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कोई ग़लत बयानी हो गई हो तो बराये मेहरबानी निशान दिही फ़र्मा देंगे ताकि आइन्दा खुद को दुरुस्त कर सकूँ ।
-आनन्द.पाठक-
उमदा जानकारी ।
ReplyDeleteInteresting thoughhts
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