उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 001 [ सालिम रुक्न कैसे बनते है ?
क़िस्त 000 में हम 8-सालिम रुक्न की चर्चा कर चुके है । ये बनते कैसे हैं , आज हम उसी पर चर्चा करेंगे।
हर सालिम रुक्न सबब और वतद के योग से बनता है। आप जानते हैं कि शायरी के लिए 8- सालिम रुक्न मुक़र्रर है
। देखिए कैसे यह वतद और सबब के कलमा के योग से बनते हैं ।
1- फ़ऊलुन فعولن = फ़ऊ+ लुन = 12+ 2 = 1 2 2 =वतद -सबब
2- फ़ाइलुन فا علن = फ़ा + इलुन = 2 + 12 = 2 1 2 =सबब+ वतद
3- मुफ़ाईलुन مفا ٰعلن = मुफ़ा +ई+लुन = 12 + 2 +2 = 1 2 2 2 = वतद + सबब+सबब
4- फ़ाइलातुन فاعلاتن = फ़ा +इला+ तुन = 2 +1 2 + 2 = 2 1 2 2 = सबब+ वतद+ सबब
5- मुस तफ़ इलुन مستفعلن = मुस+तफ़+इलुन = 2+2+ 12 =2 2 1 2 = सबब+सबब+ वतद
6- मुतफ़ाइलुन متفاعلن = मु +त+फ़ा+इलुन = (1+1)+2+12= 1 1 2 1 2 = सबब+सबब +वतद
7- मुफ़ा इ ल तुन مفاعلتن = मुफ़ा_ इ+ल+तुन = 12 + {1+1) + 2= 1 2 1 1 2 = वतद + सबब+ सबब
8- मफ़ऊलातु مفعلاتُ = मफ़+ऊ+लातु = 2 +2+2 1 = 2 2 2 1 = सबब+सबब+ वतद
ध्यान से देखें :-
[अ] सभी रुक्न में -वतद -एक खूंटॆ [ PEG] की तरह स्थिर गड़ा हुआ है -और -सबब- एक रस्सी सा बँधा हुआ है इस खूंटे से,-जो कभी -वतद -के बाएं तो कभी दाएं आ जाते है --मगर वतद को छोड़ नही रहे है। इसीलिए मैने पिछले क़िस्त में कहा था कि अरबी में - वतद -का एक अर्थ ’खूँटा’ भी होता है और सबब का एक अर्थ ’रस्सी’ ।’सबब’ कभी”वतद’ के बाएँ --कभी दाएँ कभी दोनॊ बाएं -कभी दोनो दाएँ घूम रहे हैं।
[ब] आप देख रहे है -सबब - के किए कहीं -लुन--कहीं - फ़ा- कहीं -ई- कहीं -तुन-- कहीं -मुस-=- कहीं -तफ़- कहीं--मफ़- ये सब दो हर्फ़ी कलमा है जिसमे पहला हर्फ़ ’मुतहर्रिक’ है और दूसरा हर्फ़ :साकिन’ । सवाल यह है कि सबब-ए-ख़फ़ीफ़ के लिए कोई एक ही कलमा काफी था ,पता नहीं इतने लाने की क्या ज़रूरत थी । यह तो कोई अरूज़ी ही बता सकता है ।
[स] यही बात वतद के लिए भी है । कहीं- फ़ऊ- --कहीं -इलुन- कहीं -मुफ़ा- --कहीं -इला-लिया ,।
[द] मज़े की बात तो सबब-ए-सकील में के लिए है। वाफ़िर [ मफ़ा इ ल तुन ] में इसे --इ-ल- लिया मगर कामिल [ मु त फ़ा इलुन] में इसे मु-त -लिया[ दोनॊ मुतहर्रिक ] । मगर अलग अलग।
इन सभी सालिम अर्कान पर एक एक कर के चर्चा कर लेते हैं ।
1- फ़ऊलुन فعولن =2 12
’फ़ऊलुन’[ फ़े’लुन]- एक सालिम रुक्न है और यह -"बहर-ए-मुतक़ारिब ’ का बुनियादी रुक्न है ।यह 5-हर्फ़ [ फ़े-ऐन- वाव--लाम --नून = 5 ] से मिल कर बना है तो इसे ’ख़म्मासी’ रुक्न भी कहते हैं [ख़म्स: माने-5-वस्तुओं का समाहार ]-] फ़ऊ --क्या है ? कुछ नहीं है ।यह सालिम रुक्न " वतद-ए-मज्मुआ [फ़ऊ] + सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [लुन] से मिल कर बना है यानी 1 2+2 = 1 2 2 से बनता है।
इस हमवज़न अल्फ़ाज़ हैं जैसे-----ज़माना/-- फ़साना-- बहाना--निशाना---वफ़ा कर/ सितमगर/ इशारा/ निगाहों / सितारों /सनम /मुकाबिल --- ऎसे बहुत से अल्फ़ाज़।
एक बात और । इसका वज़न हिन्दी के के गण [ देखें क़िस्त 000 ] यगंण [ यमाता = 1 2 2 ] के वज़न पर उतरता है । बस एक व्यवस्था है वज़न दिखाने का ।-फ़े -ऐन-वाव [ मुतहर्रिक +मुतहर्रिक + साकिन ] है जो वतद-ए-मज़्मुआ की नुमाइन्दगी कर रहा है बस। और लुन ? लुन भी कुछ नहीं है । लाम -नून [ मुतह्र्रिक +साकिन] सबब-ए-ख़फ़ीफ़ की नुमाइन्दगी कर रहा है ।
ज़िहाफ़ [ चर्चा आगे किसी मुनासिब मुक़ाम पर करेंगे] --हमेशा सालिम रुक्न पर ही लगता है और वह भी सालिम रुकन के ’जुज़’ [ टुकड़े पर ] ही लगता है ।यानी कोई ज़िहाफ़ [ चाहे मुफ़र्द हो या मुरक़्क़ब हो]लगेगा तो सबब के जुज़ पर या वतद के जुज़ पर ही लगेगा । ये ज़िहाफ़ात भी अलग अलग अमल के होते है _- सबब-ए-ख़फ़ीफ़ पर लगने वाले ज़िहाफ़ात अलग [ जैसे---ख़ब्न--तय्य--क़ब्ज़---कफ़--कस्र--हज़्फ़--आदि
वतद-ए-मज़्मुआ पर लगने वाले ज़िहाफ़ात अलग [ जैसे-ख़रम--सलम--कतअ’ बतर--इज़ाला आदिक-----॥ ]
इसमें कुछ ज़िहाफ़ात तो शे’र में -सद्र/इब्तिदा के लिए ही ख़ास है --।] कुछ अरूज़ और ज़र्ब के लिए ख़ास है । ज़िहाफ़ात की चर्चा --आगे कही करेंगे।
2- फ़ाइलुन [2 1 2 ]= مفا ٰعلن
’फ़ाइलुन’ - एक सालिम रुक्न है और यह "बह्र-ए-मुतदारिक" का बुनियादी रुक्न है। यह भी एक 5- हर्फ़ी यानी ख़म्मासी रुक्न भी कहते हैं[यह रुक्न सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [ फ़ा] +वतद-ए-मज़्मुआ [ इलुन] से मिल कर बना है
यानी 2+1 2= 2 1 2 के योग से बनता है। आप "फ़ऊलुन [ 1 2 2 ] से इसकी तुलना करें । देखें कि क्या फ़र्क़ है --व्यवस्था में, वतद-सबब के लिहाज़ से ।
इसके हमवज़न अल्फ़ाज़ हैं----- प्यार का /आशना / कामना / सामना/ दिल्ररूबा / ऎ सनम/ ऐसे बहुत से अल्फ़ाज़।
एक बात और। हिंदी के गण से तुलना करें [ देखें 000] तो इसका वज़न ’रगण’ [ राज़भा = 2 1 2] पर उतरता है
इसीलिए कहते हैं कि ये दोनो रुक्न हिन्दी छन्द शास्त्र से उर्दू अरूज़ में आए हैं और उसमे ’ फ़ाइलुन’ -पहले आया । ठीक ’फ़ऊलुन’ की तरह इस पर वही ज़िहाफ़ लगेगे जो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ और वतद-ए-मज़्मुआ पर लगेंगे मगर कुछ क़ैद के साथ । कारण कि इस रुक्न की शुरुआत "सबब’ [फ़ा]से हो रही है जब कि ’फ़ऊलुन’[फ़ऊ] ।शुरुआत ’ वतद-ए-मज़्मुआ’ से शुरु हो रही है । ज़िहाफ़ की चर्चा बाद में करेंगे।
3- मुफ़ाईलुन [ 1 2 2 2 ] =مفا ٰعلن
’मुफ़ाईलुन ’ -भी एक सालिम रुक्न है और यह "बह्र-ए-हज़ज" का बुनियादी रुक्न है ।यह भी एक 7-हर्फ़ी [ मीम---फ़े--अलिफ़--ऐन- ये--लाम--नून=7] सुबाई रुक्न है। यह वतद-ए-मज्मुआ [ मुफ़ा ]+ सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [ई]+ सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [लुन] से मिल कर बना है यानी = 12+2_+2 = 1 2 2 2 से बनता है । यह हिन्दी छन्द-शास्त्र के किसी गण से नहीं मिलता है ।
इसके हमवज़न अल्फ़ाज़ हो सकते है--- मना कर दो / वफ़ा करना / सितमगर हो/ पता दे दो / निभाना है / --जैसे बहुत से अल्फ़ाज़।
इस रुक्न पर लगने वाले कुछ ख़ास ख़ास ज़िहाफ़ के नाम यहाँ लिख रहा हूँ जैसे ख़रम---कफ़---कस्र--क़ब्ज़---सरम--हत्म--जब्ब:--बत्र--सतर-- । इसके अलावा और भी फ़र्द और मुरक़्कब ज़िहाफ़ भी लगते हैं।
ज़िहाफ़ की चर्चा बाद में करुँगा।
4- फ़ाइलातुन [ 2 1 2 2 ] =فاعلاتن
फ़ाइलातुन - भी एक सालिम रुक्न है और यह ’बह्र-ए-रमल’ का बुनियादी रुक्न है। यह भी एक -7- हर्फ़ी [सुबाई] है। यह रुक्न सबब-ए-ख़फ़ीफ़[ फ़ा] + वतद-ए-मज्मुआ [इला] + सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [तुन] = 2+ 1 2 + 2 = 2 1 2 2 से बनता है।यह भी एक 7-हर्फ़ी सुबाई रुक्न है ।
इसके हम वज़न अल्फ़ाज़ हो सकते हैं ---दिल-ए-बीना-- .नासुबूरी----बेहुज़ूरी -- अंजुमन है--- जैसे बहुत से अल्फ़ाज़ ।
इस सालिम रुक्न पर लगने वाले ख़ास ख़ास ज़िहाफ़ है --ख़ब्न---कफ़---क़स्र--तश्शीस---हज़्फ़--शकल आदि । इसके अलावा और भी बहुत से फ़र्द और मुरक़्क़ब ज़िहाफ़ भी लगते है ।
5- मुसतफ़इलुन [ 2 2 1 2 ]
”’मुसतफ़इलुन’- भी एक सालिम रुक्न है और यह ’बह्र-ए- रजज़" का बुनियादी रुक्न है । यह भी एक 7-हर्फ़ी सुबाई रुक्न है।
यह रुक्न सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [मुस] +सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [तफ़]+ वतद-ए-मज्मुआ [ इलुन ] से मिल कर बना है।यानी 2+2+12 =2 2 1 2
इसके हम वज़न अल्फ़ाज़ हो सकते है जैसे - आ जा सनम / आए नहीं / इतना सितम / जैसे बहुत से अल्फ़ाज़
इस सालिम रुक्न पर लगने वाले मुख्य ज़िहाफ़ हैं ------ख़ब्न---तय्यी--क़तअ’--इज़ाला और भी बहुत से फ़र्द और मुरक़्क़ब ज़िहाफ़
6- मुतफ़ाइलुन [ 1 1 2 1 2 ]
मुतफ़ाइलुन - भी एक सालिम रुक्न है और यह ’बह्र-ए-कामिल ’ का बुनियादी रुक्न है। यह भी एक 7-हर्फ़ी सुबाई रुक्न है।
यह रुक्न सबब-ए-सकील [ मु त ] + सबब-ए-ख़फ़ीफ़ [फ़ा]+वतद-ए-मज्मुआ [इलुन ] से मिल कर बना है यानी 1 1+ 2+ 1 2 = 1 1 2 1 2
यहाँ पर प्रदर्शित 1 1 को आप मुतहर्रिक हर्फ़ समझे न कि हिंदी का ’लघु वर्ण’ समझें।
ध्यान देने की बात है कि पहला - सबब- सबब-ए-सकील है और जब कि दूसरा सबब -सबब-ए-ख़फ़ीफ़ है ।कहने का मतलब यह कि
सबब-ए-सकील पर लगने वाले ज़िहाफ़ात अलग होते हैं जब कि सबब-ए-ख़फ़ीफ़ पर लगने वाले ज़िहाफ़ात अलग होते हैं।
[ एक विशेष टिप्पणी --पिछली क़िस्त [000] में "फ़ासिला सुग़रा" की चर्चा किए थे कि वह चार हर्फ़ी कलमा जिसमे मुतहर्रिक+ मुतहर्रिक + मुतहर्रिक +साकिन हर्फ़ हो यानी 1 1 2 जैसे--बरकत-- हरकत आदि जिसमें -ते [ते] साकिन है और बाक़ी सभी मुस्तमिल [ इस्तेमाल किए हुए ] हर्फ़ पर ज़बर का हरकत है । तो मु त फ़ा इलुन को फ़ासिला + वतद से भी दिखा सकते हैं । मगर हमने तो ऊपर सबब और वतद के परिभाषा से ही दिखा दिया और बता दिया । इसीलिए मैने कहा था कि
फ़ासिला के बग़ैर भी अरूज़ का काम चल सकता है ।]
इस के हमवज़न अल्फ़ाज़ हो सकते है ---यूँ ही बेसबब / न फ़िरा करो / कोई शाम घर / भी रहा करो /[बशीर बद्र की एक ग़ज़ल से]-या ऐसे ही बहुत से जुमले।
या -तू बचा बचा / के न रख इसे / न कही जहाँ / में अमाँ मिली / [ इक़बाल की एक ग़ज़ल से ]
और इस पर लगने वाले मुख्य मुख्य ज़िहाफ़ात है ---इज़्मार--वक़्स--क़त’अ--इज़ाला --
7- मफ़ाइलतुन [ 1 2 1 1 2 ]
मफ़ाइलतुन - भी एक सालिम रुक्न है और यह बह्र-ए-वाफ़िर का बुनियादी रुक्न है। यह भी एक 7-हर्फ़ी सुबाई रुक्न है।
यह वतद-ए-मज्मुआ [ मुफ़ा ]+ सबब-ए-सकील[ इ ल] + सबब-ए-ख़फ़ीफ़[ तुन] से मिल कर बना है यानी 12 1 1 2 = 1 2 1 1 2
यहाँ पर प्रदर्शित 1 1 को आप मुतहर्रिक हर्फ़ समझे न कि हिंदी का लघु वर्ण ।
[ एक विशेष टिप्पणी --इस रुक्न को भी फ़ासिला + सबब से दिखा सकते हैं यानी वतद+फ़ासिला = 12 112 और वतद और सबब से भी।आप को जो सुविधाजनक लगे।
एक बार ध्यान से देखें -- क्या आप को मफ़ा इ ल तुन [ वाफ़िर] --बरअक्स मु त फ़ाइलुन [ कामिल का नहीं लगता ?
इस पर लगने वाले मुख्य ज़िहाफ़ात हैं------इज़्मार---वक़्स---कतअ’--इज़ाला --और भी बहुत से फ़र्द और मुरक़्क़ब ज़िहाफ़ भी।
8- मफ़ऊलातु [ 2 2 2 1 ]
मफ़ऊलातु -- भी एक सालिम 7-हर्फ़ी सुबाई रुक्न तो है मगर यह किसी सालिम बह्र की बुनियादी रुकन नहीं है। हो भी नहीं सकती । कारण कि इसका हर्फ़-उल-आखिर -तु- [ ते पर
पेश की हरकत है ] मुतहर्रिक है । उर्दू ज़बान की फ़ितरत ऐसी है कि मिसरा का आख़िरी हर्फ़ -साकिन -हर्फ़ पर गिरता है, मुतहर्रिक पर कभी नहीं गिरता ।तो ?
यह मिसरा के आखिर में अपने मुज़ाहिफ़ शक्ल [ जिसमे आखिरी साकिन हो जाता है ] में ही आ सकता है । हाँ यह रुक्न अपने सालिम शकल में मुरक़्क़ब बहर के बीच में आ सकती
है और आती भी है । मगर ज़्यादातर अपनी मुज़ाहिफ़ शकल में ही आती है ।
इस के हम वज़न अल्फ़ाज़ तो सालिम शकल में नहीं दिए जा सकते । हाँ क़सरा-ए-इज़ाफ़त और वाव-ओ-अत्फ़ की तरक़ीब से हो सकता है ।
इस पर लगने वाले ्मुख्य मुख्य ज़िहाफ़ात हैं---अज़्ब--क़स्म--जम्म-- अक़्ल --नक़्स-- और भी बहुत से मुफ़र्द और मुरक़्क़ब ज़िहाफ़ भी।
उर्दू शायरी में प्रचलित 8-सालिम अर्कान की बात तो हो चुकी मगर अबतक "वतद-ए-मफ़रूक़" का ज़िक्र तो आया नहीं जब कि पिछले क़िस्त [000] में इस पर चर्चा कर चुका हूँ।
ऊपर वर्णित दो रुक्न -ऎसे हैं जिनके इमला की दो शकले [ उर्दू स्क्रिप्ट में लिखने के दो तरीक़े ] मुमकिन है और लिखे जाते हैं । एक तरीक़े को --मुतस्सिल और दूसरा तरीक़े को मुन्फ़सिल कहते है।
मुत्तस्सिल तरीके में अर्कान में मुस्तमिल तमाम हर्फ़ -सिल्सिले- से यानी एक दूसरे से मिला कर लिखते है जब कि -मुन्फ़सिल- तरीक़े में कुछ हर्फ़ में ’फ़ासिला- देकर लिखते है
मुत्तस्सिल तरीक़ा तो वही जो ऊपर लिखा जा चुका है । मुन्फ़सिल तरीका नीचे लिख रहा हूँ ।
तरीक़ा कोई हो- वज़न दोनो में समान ही रहेगा और तलफ़्फ़ुज़ भी लगभग समान रहेगा।
--फ़ाइलातुन [ रमल ] فاع لاتن =’ मुन्फ़सिल शकल ]= 2 1 2 2 = फ़ाअ’ ला तुन = [ फ़ा अ’ में---ऎन ्मुतहर्रिक है यानी --्फ़े [-मुतहर्रिक] +अलिफ़ [साकिन] + ऐन [ मुतहर्रिक } ---यानी वतद-ए-मफ़रुक़ [ दोनो मुतहर्रिक के बीच में फ़र्क है।
--मुसतफ़इलुन [ रजज़] مس تفع لن= मुन्फ़सिल शकल = 2 2 1 2 = मुस तफ़अ’ लुन = [ तफ़ अ’ -यहाँ भी -ऎन- मुतहर्रिक है ते -[ मुतहर्रिक] + फ़े [ साकिन ] + ऐन [ मुतहर्रिक ]-- यानी वतद-ए-मफ़रुक़ [ दोनो मुतहर्रिक के बीच में फ़र्क है।
अब आप कहेंगे कि इस मुक़ाम पर इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं ? बिलकुल सही। इसलिए कर रहे है कि कुछ मुरक़्क़ब बह्र [ जैसे-----\] में यह रुक्न अपने मुन्फ़सिल शकल में ही आती हैं।
और उस बह्र लगने वाले ज़िहाफ़ -वतद-ए-मफ़रुक -वाले ज़िहाफ़ लगेंगे। बहुत से लोग यही गलती कर देते है और उस मुक़ाम पर भी --वतद-ए- मज्मुआ वाले ज़िहाफ़ लगा देते हैं । हमे इसका पास [ ख़याल ] रखना होगा
ये दोनो कोई नया रुक्न नहीं है । ये तो बस वर्णित रुक्न के बदली शकल हैं ।नया कुछ भी नहीं।
-आनन्द.पाठक-
बहुत सार्थक।
ReplyDeleteधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
जी बहुत बहुत धन्यवाद आप को । धन तेरस की आप को भी शुभकामनाएँ शास्त्री जी
ReplyDeleteसादर