Wednesday, August 18, 2021

उर्दू बह्र पर एक बातचीत :क़िस्त 81 : कसरा-ए-इजाफ़त पर अतिरिक्त बातें[ भाग-2 ]

 क़िस्त 81 : कसरा-ए-इजाफ़त पर अतिरिक्त बातें[ भाग-2]

अतिरिक्त जानकारी के लिए आप क़िस्त 70--80--105 भी देख सकते हैं

पिछली क़िस्त 80 में  Y Type ke इज़ाफ़ती अल्फ़ाज़ की चर्चा की थी ।यानी 

[Y]  लफ़्ज़  A --का आखिरी हर्फ़ पर -आ [ अलिफ़ ]- या -ऊ [ वाव ] का स्वर  जुड़ा हो 


आज हम [Z]  लफ़्ज़  A ---का आखिरी हर्फ़ पर -ई [ या] का स्वर जुड़ा हो जैसे दीवानगी-ए-शौक़. तीरगी-ए-वहम-

अफ़शानी-ए-गुफ़्तार --महरूमी-ए-जावेद---तरयाकी-ए-कदीम-- तिश्नगीए-शौक़---आदि । 

पर इज़ाफ़त की चर्चा करेंगे।

ऐसे केस में -बड़ी ई- वाले हर्फ़   को कसरा लगा कर छोटी इ करेंगे फ़िर -ए- लगा कर इज़ाफ़त बनाएँगे ।

ग़ालिब का एक शे’र है -बह्र है   2122--1122--1122--22 [ यानी बह्र-ए-रमल मुसम्म्न मख़्बून मक़्तूअ’]

-वाए-दीवानगी-ए-शौक़ कि हरदम मुझको

आप जाना उधर और आप ही हैरां  होना

यानी तक़्तीअ’ में यहाँ  -गी [2] - को -गि [1] - करेंगे और फिर--ए- जोड़ेंगे

अब इस शे’र की तक़्तीअ’ भी कर के देख लेते हैं

2  1    2  2/ 1 1 2  2 / 1  1  2  2  / 2  2 

वाए-दीवा/ न गि-ए-शौ/क़ कि हरदम /मुझको

2   1  2 2 / 1 1   2     2   / 1 1 2  2 / 2 2

आप जाना /उध र और आ/प ही हैरां / होना   

उधर + और+ आप  = उ ध रौ रा +-प  [ 1 1 2 2 ] + 1

[यानी अलिफ़ क वस्ल उधर के आखिरी हर्फ़ -र- पर और और के बाद जो आप का अलिफ़ ]

बज़ाहिर इस शे’र में -ए- का वज़न -2-ठहरता है 

अब एक शे;र और लेते हैं ग़ालिब का ही’ है--इसकी भी बह्र वही है 

न बँधे तिश्नगी-ए-शौक़ के मज़मूँ ग़ालिब

गरचे दिल खोल कर  दर्या को भी साहिल बाँधा

इसकी भी तक़्तीअ’ कर के देख लेते हैं 

1   1 2 2    / 1 1    2   2  / 1 1   2 2  / 2 2  

न बँधे तिश/  न गि  -ए-शौ / क़ के मज़मूँ /ग़ालिब   [ यहाँ भी -तिश्नगी [ 2 1 2  ]-को पहले तिशनगि - 2 1 1 -करेंगे फिर इज़ाफ़त का -ए-लगाएंगे

2  1     2      2  / 1 1   2 2 / 1  1    2 2   / 2 2 

गरच:  दिल खो /ल के   दर्या /को भी साहिल /बाँधा

बज़ाहिर यहाँ भी -ए- का वज़न -2-लिया गया है 

अच्छा अब आप के मन में एक सवाल उठता होगा कि मिसरा उला के पहले मुक़ाम पर तो 2122-- का वज़न आना चाहिए -और हमने  1122 का वज़न दिखा कर तक़्तीअ कर दी।

जी बिलकुल सही --आप का सवाल 100%  दुरुस्त है

जी। इस बह्र में [ और बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ के मख़्बून मुसद्दस --में  भी \ पहले मुक़ाम [जिसे  सदर/ इब्तिदा का मुक़ाम कहते हैं ] में First वाले -2- के मुक़ाम पर -1- लाया जा सकता है 

अरूज़ में इसकी इजाज़त है । याद करें ग़ालिब का वह मशहूर शे’र ----दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है --[ 2122---1212---22 ] में दिल-ए-नादाँ का वज़न = 1 1 2 2 है । न कि 1 2 2 2

या 2 1 2 2 

अब चलते चलते एक आख़िरी शे’र भी देख लेते हैं ग़ालिब का ही है ।

ताज़ा नहीं  है नश्शा  फ़िक्र-ए-सुखन मुझे

तरयाक़ी-ए-कदीम हूँ दूद-ए-चिराग़ का 

[ दूद-ए-चिराग़ =  चिराग़ का धुआँ ]

इस शे’र की बह्र है ---221-2121--1221---212 [ बह्र-ए-मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ महज़ूफ़ ]

अब इसकी भी तक़्तीअ’ कर के देखते हैं } मिसरा सानी की तक़्तीअ’ मैं कर देता हूँ । मिसरा उला की आप कर लें--आप का अत्म विश्वास बढेगा।

221---     /2121---   /1221--     /212

तरयाक़ि / -ए-कदीम / हूँ दूद-ए-चि/ राग़ का 

वही बात तरयाक़ी को पहले -तरयाक़ि- किया फिर इज़ाफ़त -ए- लगाया 

एक बात और 

दूद-ए- --को   -दूदे [2 2 ] -- के वज़न  पर लिया जो जायज भी है । कसरा इज़ाफ़त -ए- दूद के आख़िरी हर्फ़ को मुतस्सिर [ प्रभावित ] कर दिया और यहाँ बह्र और वज़न की

Demand खींच कर पढ़ने की है सो -द- को खींच कर पढ़ा।

अत: हम कह सकते है कि इज़ाफ़त -ए- का वज़न बह्र और रुक्न की माँग के अनुसार कभी -1- कभी -2- होता रहता है 

चूँकि हिंदी गज़लों में अब कम ही इज़ाफ़त का प्रयोग होता है अत: इसके बारे में आप को बहुत परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।

वह तो बात निकली सो लिख दिया कि अगर कभी आप को कदीम [ पुराने ]शायरों के कलाम मसलन ग़ालिब--मीर--ज़ौक़--इक़बाल को समझने और तक़्तीअ’ करने में सुविधा हो ।

यह चर्चा यही समाप्त करते हैं।

[ नोट -इस मंच के तमाम असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो ज़रूर निशानदिही फ़रमाएँ कि आइन्दा मैं खुद को दुरुस्त कर सकूं~।


-आनन्द.पाठक- 

Mb 8800927181

Email  akpathak3107@gmail.com

दिनांक 17-अगस्त-21


4 comments:

  1. अत्यन्त लाभप्रद जानकारी.. अमूमन ही कोई इतनी तफ़सीश से जानकारी साझा करता है... हृदय से आभार आपका....🙏

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