Wednesday, December 11, 2024

उर्दू बह्र पर एक बार्तचीत :क़िस्त 112 : सबब-ए-ख़फ़ीफ़ पर लगने वाले 3- riders/ restrictions

 क़िस्त 112 : सबब-ए-ख़फ़ीफ़ पर लगने वाले 3- riders/ restrictions

अरब के  अरुजियों ने सालिम अर्कान पर ज़िहाफ़ात के अमल के संदर्भ में कुछ rider/restriction लगा रखे हैं ।  ऐसे ही 3- rider/restriction जो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ पर

लगा रखे हैं वो हैं_

1- मुआ’कब:

2- मुरक़ब:

3- मुकानफ़:

 अरूज़ की किताबों में इन - rider/restriction  कम ही चर्चा हुई है ।आज इन्ही राइडर पर बात करेंगे।

1- मुआ’क़ब: = 

जब किसी एक सालिम रुक्न में या दो adjacent  सालिम रुक्न में , दो consecutive  सबब-ए-ख़फ़ीफ़ एक साथ [ यानी एक के बाद एक ] आ जाए तो --उस स्थिति में-दोनो एक साथ साकित नहीं होंगे।

या तो किसी एक सबब पर उचित ज़िहाफ़ लगेगा या  फिर किसी पर भी उचित  ज़िहाफ़ नहीं लगेगा। दूसरे शब्दों में दोनो सबब-ए-ख़फ़ीफ़  पर एक साथ ज़िहाफ़ का अमल नहीं

होगा। यही मुआ’कब: है।

ऐसी स्थिति 9- बहूर में आ सकती है-

1- तवील

2- मदीद

3- वाफ़िर

4- कामिल

5- हज़ज

6-रमल

7- मुन्सरिह

8- ख़फ़ीफ़

9- मुज्तस


यह राइडर --किसी शे’र में 4 या 5- मुतहर्रिक हर्फ़ को एक साथ आ जाने से रोकता है । किसी  शे’र में 4 या 5 मुतहर्रिक का एक साथ आ जाना अच्छा नहीं माना जाता।   

साथ ही इसका एक उद्देश्य यह भी होता है कि बह्र में कोई भ्र्म न उत्पन्न हो जाए ।


2- मुरक़्कब: =

यदि किसी ’एकल’ रुक्न [ यानी एक ही सालिम रुक्न में ] दो सबब-ए-खफ़ीफ़ आस-पास [  consecutive  ] एक साथ आ जाए तो --

--उसमे से किसी एक सबब पर एक उचित ज़िहाफ़ लगना ही लगना है।

ऐसी स्थिति बह्र-ए-मुज़ारे और बह्र-ए-मुक़्तज़िब में पाई जा सकती है।

3- मुकानफ़:

यह भी सबब-ए-ख़फ़ीफ़ से ही संबधित है।

यदि किसी एक ही रुक्न में दो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ आ जाए तो -

-- या तो एक सबब पर ज़िहाफ़ लग सकता है 

--या दोनो सबब पर ज़िहाफ़ लग सकता है 

--या फ़िर किसी पर ज़िहाफ़ नहीं लगेगा । 


ऐसी स्थिति निम्न लिखित बह्र में आ सकती है

बसीत

रज़ज

सरीअ;

मुन्सरिह 


हालां कि इन सब बातों का बहुत कम ज़िक्र अरूज़ की किताबों में मिलता है फिर भी इन-- rider/restriction   का ख़याल [ पास] रखा जाए तो बेहतर।

सादर

-आनन्द.पाठक- 


-नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही  ज़रूर फ़र्माएँ   कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।






=








Tuesday, December 10, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 111 : एक सवाल : क्या 1212---1122---1122---112 बह्र हो सकती है ?

 एक सवाल  : क्या 1212--1122---1122--112 बह्र हो सकती है ?

मेरे एक मित्र ने एक सवाल पूछा था कि
[A] यदि 1212---1122---1212----112 एक बह्र हो सकती है तो
[B} 1212---1122----1122-----112 बह्र क्यों नही हो सकती ?
अरूज़ के लिहाज़ से बह्र [B] नहीं हो सकती ।

दरअस्ल बह्र[A] एक नियमित बह्र है जो अरूज़ के नियमों के अनुसार बनती है और यह बह्र, बह्र ए मुज्तस की एक मुसम्मन मुज़ाहिफ़ शकल है
और इसका नाम है बह्र-ए-मुज्तस मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़
यानी 1212---1122---1212---112  एक नियमित बह्र है।|
बह्र मुज्तस का बुनियादी रुक्न होता है-
[ 2212---2122]
यानी मुस तफ़अ’ लुन --फ़ाइलातुन यानी
मुज्तस की मुसम्मन शकल होती है:- 2212---2122----2212---2122
[ मुस तफ़अ’ इलुन---फ़ाइलातुन--- मुस तफ़अ’ इलुन--फ़ाइलातुन ]
2212 + ख़ब्न = मख़्बून = 1212
2122 + ख़ब्न = मख़्बून =1122
2122 + ख़ब्न + हज़्फ़ = महज़ूफ़ 112
अत: मुज्तस बह्र की मुज़ाहिफ़ शकल हो गई 1212---1122---1212---112 यानी बह्र [A] जो सवाल में है।
मगर
2212== मुस तफ़अ’ लुन/ मुसतफ़इलुन = बह्र रजज़ का बुनियादी रुक्न है
2212 में लिखने के दो रूप है--
एक तो मुतस्सिल शक्ल = जिसे मुस तफ़ इलुन= 2 2 12 [ सबब+सबब+ वतद -ए- मज्मुआ ] कर के लिखते है
दूसरा मफ़रूक शक्ल =जिसे मुस तफ़अ लुन = 2 21 2 [ सबब+ वतद मफ़्रूक + सबब ] कर के लिखते है।
अगरचे दोनों ही केस मे वज़न और तलफ़्फ़ुज़ समान ही रहता है मगर
रजज़ में मुतस्सिल शकल ही प्रयोग होती है यानी मुस तफ़ इलुन =22 12 जब कि मुज्तस वाली बह्र मे मफ़रुक वाली शकल [ 2 21 2 ] इस्तेमाल की जाती है।
और मुज्तस की इस शक्ल में वही ज़िहाफ़ लगते है जो वतद-ए-मफ़रुक वाली शकल पर लगते है और इस श्रेणी में ऐसा कोई ज़िहाफ़ नहीं है जो
2212 [ मफ़रुक ] को 1122 कर सके 
इसीलिए बह्र [ब] नहीं बनती है । नहीं बन सकती।
एक बात और
मुस तफ़अ लुन [ 2 21 2 ] रुक्न में ’ मुआ’कब: भी है । मुआकब: को एक rider/ restriction समझ लें रुक्न के लिए।
इन rider/ restriction पर फिर कभी बात/ चर्चा करेंगे ।
नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़र्माएँ कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।
्सादर
-आनन्द पाठक

Tuesday, November 12, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 110 : बह्र 212--212--212--212 की एक मुज़ाहिफ़ बह्र

 किस्त 110  :  बह्र 212--212--212--212 की एक  मुज़ाहिफ़ बह्र पर चर्चा 

क्रमांक 109 से आगे-----


 पिछली क़िस्तों में हमने देखा था कि कैसे  बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम 

122---122---122---122 पर  ज़िहाफ़ और तख़्नीक के अमल से 

21--121---121--122 वज़न बरामद किया जा सकता है या फिर इससे

22--22--22--22  या 22--22--22--22--// 22--22--22--22 वज़न  बरामद किया जा सकता है 

और यह बह्र-ए-मीर का वज़न नहीं है । अगरचे मीर की बहर बह्र-ए-मुतक़ारिब से ही बनती है

आज यही तमाम वज़न बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम से भी ज़िहाफ़ और तस्कीन ए औसत  के अमल से हू-ब-हू  same to same वज़न बरामद किया  जा सकता है ।

देखते हैं कैसे ?

यह बह्र तो आप पहचानते  होंगे और जानते भी होंगे।

[क]   212---212---212---212  जी हाँ आप सही हैं । बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम।

अब इस पर एक ज़िहाफ़ --ख़ब्न  --लगा कर देखते है ।

212+ ख़ब्न    = मुज़ाहिफ़ मख़्बून  112 

 चूंकि खब्न एक आम ज़िहाफ़ है अत: शे’र के किसी मुक़ाम पर लगाया जा सकता । तो इसे सभी मुक़ाम पर लगा कर देखते  है

112---112---112---112- [ बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन मख़्बून ]

चूँकि अब यह मुज़ाहिफ़ बह्र हो गई और अब इस पर तस्कीन-ए-औसत का अमल हो सकता है।

[ तस्कीन-ए-औसत का अमल = अगर किसी सिंगल मुज़ाहिफ़ रुक्न में  तीन मुतहर्रिक हर्फ़ एक साथ आ जाएँ तो बीच वाला मुतहर्रिक [ यानी औसत वाला मुतहर्रिक -साकिन-] किया जा सकता है । 

यहाँ  112 = फ़े अ’  लुन = फ़े- मुतहर्रिक+ ऐन -मुतहर्रिक + लाम- मुतहर्रिक + नून [साकिन]  यानी -3- मुतहर्रिक एक साथ

यानी 112 को 22 किया जा सकता है 

यानी 112---112--112---112 = 22--22--22--22 

कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब  भी यही वज़न आया था जिसे हमने-A- से दिखाया था

इस बह्र की मुज़ाहिफ़ शकल भी हो सकती है 

112---112---112---112  // 112--112--112---112 =   तस्कीन औसत के अमल से 

= 22---22---22---22 // 22--22---22---22-

कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब में यही वज़न आया था जिसे हमने -A // A  से दिखाया था

और वही शर्त यहाँ भी लागू होगी --कि 1-1 को 2 तो किया जा सकता है मगर 2 को 1-1 नहीं किया जा सकता। 

  ध्यान रहे  शकल भले ही मीर की बह्र सी लगती है परन्तु यह बह्र-ए-मीर  है नहीं  जैसा कि बहुत से लोग समझते है।

--- --- ---

अब दूसरी

[ख 212--212---212---212 पर ख़ब्न + कता’ का ज़िहाफ़ लगा कर देखते 

[ note - ख़ल’अ  एक मुरक्कब ज़िहाफ़ है जो    खब्न + कत’अ के मेल से बनता है मुज़ाहिफ़ को ’ मख़्लूअ’ कहते हैं।

यह ख़ास ज़िहाफ़ है और यह ह अरूज़ / ज़र्ब के मुक़ाम पर ही लगता है ]

यानी 

212+ ख़ब्न              = मुज़ाहिफ़ मख़्बून 112

212+ ख़ब्न+क़त’अ = मुज़ाहिफ़ मख़्लूअ’ 12 

इस ज़िहाफ़ के लगाने से 

212---212--212---212- की शकल 

112 ----112---112--12 हो जाएगी। अब चूंकि यह मुज़ाहिफ़ बह्र हो गई तो इस परभी तस्कीन-ए-औसत का अमल हो सकता है और तब एक वज़न यह भी बरामद होगी

22--22--22--12 कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब में यही वज़न आया था जिसे हमने - B- से दिखाया था

और इसकी मुज़ाहिफ़ शकल भी मुमकिन है यानी

22--22--22--12 // 22--22--22--12 कुछ याद आया ? बहर-ए-मुतक़ारिब में यही वज़न आया था जिसे हमने

-B// B- से दिखाया था

और यह मीर की बह्र नही है अगरचे शकल कुछ वैसी ही लगती है।

ख़ैर

कहने का मतलब यह है कि आप लोग जो

22--22--22--22 के  आधार पर शायरी करते है उससे यह पता नहीं चलता कि आप ने बहर मुतक़ारिब से बाँधा है या मुतदारिक से ।

और फिर हम कयास लगाने लगते है कि सम वाले स्थान पर  2 हो-- विषम वाले स्थान पर 2 हो ---आदि आदि।

बेहतर यही होगा कि बह्र / वज़न की मूल  शकल ही लिखे जिससे पता तो चले कि आप मुतकारिब की बात कर रहे हैं या मुतदारिक की बात कर रहे है

हमें लगता है कि बहुत से लोगो को 

22--22--22--22//22--22--22--22 बहुत आसान वज़न लगता है मगर ऐसा है नहीं।

हाँ अगर आप के सभी लफ़्ज़ के वज़न - 22- पर है तो कोई बात नहीं । मगर अमूमन ऐसा होता नहीं।

[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही  ज़रूर फ़र्माएँ   कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर

-आनन्द.पाठक-





उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 109 : बह्र 21---121---121---12 पर चर्चा

 किस्त 109  :  बह्र 21---121---121--12 पर एक चर्चा 

क्रमांक 108 से आगे-----

पिछली क़िस्तों में बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम से बरामद होने वाली दो मुज़ाहिफ़ बहरों की चर्चा की थी
[A] = 21---121----121---122 और तख़्नीक़ के अमल से एक मख़्सूस वज़न [ ख़ास वज़न] 22--22--22--22 भी हासिल किया थाऔर इसकी मुज़ाहिफ़ शकल 
 [A // A ] = 21---121--121--122 // 21--121--121--122 [ 16 रुक्नी , 16 मात्रा भार ]] वज़न की भी चर्चा की थी और जिस पर तख़्नीक़ के अमल से 
एक मख़्सूस  वज़न 22--22--22--22  // 22--22--22--22  [ 16-रुक्नी] भी हासिल किया था।
उसी प्रकार 
[B]]  = 21--121--121--12  और तख़्नीक़ के अमल से एक मख़्सूस वज़न 22--22--22--2 भी हासिल किया था और उसकी मुज़ाहिफ़ शकल 
[B //B ] = 21---121--121--12 // 21--121--121--12 [ 16 रुक्नी , 14 मात्रा भार ] वज़न की भी चर्चा की थी जिस पर तख़्नीक़ के अमल से एक मख़सूस वज़न
= 22--22--22--2 //     22 --22--22--2 भी हासिल किया था।
ये तमाम औज़ान फिर भी मीर की बह्र नहीं ।
आज इन्ही   के आधार पर मीर के बह्र की चर्चा करेंगे

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 हमारे कुछ मित्रों ने मीर की बह्र की व्याख्या अपने अपने तरीके से ,अपनी अपनी सुविधानुसार कर रखा है - गोया हाथी की व्याख्या किसी ने सूँड से की, किसी ने पूँछ से की. किसी ने पैर से की किसी ने कान से की।
 वैसे तो बह्र-ए-मीर पर मैने एक विस्तृत आलेख अपने ब्लाग पर [ https://www.arooz.co.in/2020/06/60.html लगा रखा है जो पाठक गण इच्छुक हों वहाँ पढ़ सकते है।
www.arooz.co.in  मंच के जो पाठक वहाँ नहीं जा सकते उनके लिए मीर के बह्र के बारे में कुछ बातें यहाँ लिख रहा हूँ ।
---  -- 
अच्छा 
बह्र  A//A   तो समझ में आ गया कि यह बह्र [A ] की मुज़ाइफ़ [ दो गुनी की हुई ] बह्र है जिसमें बाएँ भाग का मात्रा भार ,दाएँ भाग के मात्रा भार के बराबर है यानी 16//16
B//B  भी समझ में आ गया कि यह बह्र[B] की मुज़ाइफ़ [ दो गुनी की हुई ] बह्र है जिसमें बाएँ भाग का मात्रा भार ,दाएँ भाग के मात्रा भार के बराबर है यानी 14/14 और यह दोनो अमल अरूज़ के ऐन क़ायदा के मुताबिक़ भी है । और यह क़ायदा मीर से पहले भी राइज़ [ प्रचलन में] था और आज भी है ।

तो फिर  A  //  B  क्या है?
 यह तो न [A ] की मुज़ाइफ़ है और न ही [B] की ही मुज़ाइफ़ है। और इस कम्बीनेशन पर क्लासिकल अरूज़ भी कुछ नहीं कहता है। । उस समय भी अरूज़ में ऐसे कम्बीनेशन पर भी  कुछ कहा , लिखा नहीं गया । यानी दोनॊ भाग 16-रुक्नी तो है मगर मात्रा भार मुखतलिफ़ है 16 // 14
21--121--121---122 // 21--121--121--12 = 16//14 
तो फिर यह कौन सी बह्र है ? 
यही बह्र-ए-मीर का  मूल वज़न है ।और इस पर भी तख़नीक़ का अमल हो सकता है जिससे कई मुतबादिल औज़ान बरामद हो सकते है ।
कुछ बुनियादी बातें--
1-इस बह्र में मिसरा -2- से शुरु होता है और 2 पर खत्म भी होता है
2- इस बह्र में 1-1 को 2 तो कर सकते है मगर 2 को 1-1 नहीं कर सकते
3- बाएँ वाला भाग में 16-मात्रा भार होगा और दाएँ वाले भाग मे 14- मात्रा भार [ यानी एक सबब-ए-ख़फ़ीफ़ कम }
यानी बाएँ वाले गाल में एक गड्ढा  [dimple] समझ लीजिए जो इस बह्र की खूबसूरती बढ़ा देता है।
4- यह भी एक आहंगखेज़ बह्र है । 
5- पत्ता पत्ता बूटा बूटा--[ मीर की बह्र मे} यह ग़ज़ल --कई गायकों ने गाया है। फ़िल्म " मिरजा ग़ालिब " [गुलजार द्वारा निर्देशित , नसरुद्दीन शाह द्वारा अभिनीत]  में यह ग़ज़ल बड़े दिलकश अन्दाज़ में गाया है --आप भी सुन कर लुत्फ़ अन्दोज़ हो सकते हैं।

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इस बह्र में [ और ऐसी ही अन्य बह्रों में]  मिसरो में वज़न की Flexibilty तो बहुत होती है मगर एक constaint भी है जिस पर बहुत से लोग ध्यान नहीं देते।
अगर मूल बह्र को ध्यान से देखेंगे तो एक बात स्पष्ट होगी --कि जो रुक्न -1-[ मुतहर्रिक] पर गिर रहा है ठीक उसके सामने वाला रुक्न -1-[ मुतहर्रिक] से शुरु भी हो रहा है 
जैसे --
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है--[हाल+ हमारा]
बाग तो सारा जाने है    [ बाग़+तो ] --तो यहाँ -1- की वज़न पर है मुतहर्रिक है
-----
इस वज़न से मीर की कई ग़ज़लों [ मिसरों ] की तक़्तीअ ब आसानी हो जाती है मगर बावज़ूद इसके कुछ मिसरों की तक्तीअ फिर भी नहीं हो पाती है --जिसे हम ’अपवाद’ स्वरूप कह सकते है।

चूँकि उस समय [ मीर के ज़माने में ] ऐसे कम्बीनेशन का कहीं ज़िक्र नहीं था तो शम्स्सुरर्हमान फ़ारुक़ी साहब ने इस बह्र का नाम " बह्र-ए-मीर ’ रख दिया । यह नाम फ़ारुक़ी साहब का दिया हुआ नाम है। फ़ारुक़ी साह्ब ्ने मीर की शायरी पर बहुत काम किया है। और उन्होने मीर की ऐसी गज़लो की तक्तीअ करने के लिए --एक वज़न [ बहुत से Ifs n Buts के साथ ] अपनी किताब [ दर्स-ए-बलाग़त में] तज्वीज़ भॊ किया है 
जब कि डा0 आरिफ़ हसन ख़ान साहब [ मे’राज उल अरूज़ ्किताब के लेखक] ने अपने एक आलेख में ऊपर वाला वज़न तजवीज़ किया है ।
फिर भी दोनॊ तजवीज से भी मीर के ग़ज़ल के कुछ मिसरों की तक्तीअ नहीं हो पाती।

अगले क़िस्त में --एक ऐसे ही बह्र की चर्चा करेंगे जिससे  22--22--22--22// 22--22--22--22  का भी वज़न बरामद हो सकता है मगर वह बह्र-ए-मीर नहीं होगा ।

[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही  ज़रूर फ़र्माएँ   कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर
-आनन्द.पाठक-

Saturday, November 9, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 108 :बह्र 21--121--121--12 पर एक चर्चा

 किस्त 108  :  बह्र 21---121---121--12 पर एक चर्चा 

क्रमांक 107 से आगे-----


पिछली क़िस्त में बह्र-ए-मुतक़ारिब से निकली एक मुज़ाहिफ़ बह्र

A =  21---121---121---122 पर चर्चा की थी और तख़्नीक़ के अमल से प्राप्त होने वाले अन्य औज़ान की भी चर्चा की थी जिसमे एक वज़न 

22---22---22---22 भी था और यह बह्र-ए-मीर नहीं है

साथ ही इसके 

A//A =21---121---121---122  // 21---121---121---122 और तख़्नीक़ के अमल से प्राप्त होने वाले अन्य औज़ान की भी चर्चा की थी

जिसमे एक वज़न 

22---22---22---22 // 22---22--22---22  भी था। और इनमें से कोई भी वज़न बह्र-ए-मीर नहीं है।

------

  आज हम बह्र-ए-मुतक़ारिब से ही प्राप्त होने वाली दूसरी मुज़ाहिफ़ बह्र -B-

B  = 21---121---121---12 की चर्चा करेंगे । देखते हैं -यह बह्र कैसे बनती है ?


आप इस बह्र को 122---122---122---122 को अवश्य पहचानते होंगे।  हाँ वही बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम। आप सही हैं।

अब इसके अर्कान पर कुछ ज़िहाफ़ --सरम---क़ब्ज़---हज़्फ़ ---लगा कर देखते है, क्या होता है ।


122 + सरम = असरम   21 

122 + क़ब्ज़ = मक़्बूज़  121

122 + हज़्फ़ = महज़ूफ़ 12

 तो 122---122--122--122 की मुज़ाहिफ़ शकल हो जाएगी

यानी

B = 21----121----121---12 

[ बह्र-ए-मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ मक़्बूज़ महज़ूफ़ ]

और इस बह्र पर भी पहले की तरह तख़नीक़ का अमल हो सकता है और कई मुतबादिल औज़ान बरामद किए जा सकते हैं।[ आप चाहें तो खुद

कर के मुतमईन हो सकते हैं कि कितने ऐसे कितने मुतबादिल औज़ान बरामद हो सकते है।

जिसमे एक वज़न  22---22---22----2 का भी बरामद होगा । मगर यह बह्र-ए-मीर नहीं होगा।

अच्छा, अरूज़ के कायदे के मुताबिक इस बहर के भी मुज़ाइफ़ शकल [ दो गुनी शकल ] की जा सकती है । यानी

B //B = 21---121---121---12 // 21--121--121---12- और इस पर भी तख़्नीक़ का अमल किया जा सकता है और कई मुतबादिल औज़ान बरामद हो सकते है

जिसमें से एक वज़न 

22--22--22--2 // 22--22--22--2 भी होगा मगर वह भी बह्र-ए-मीर नहीं होगा।


ऐसी बह्रों में मिसरों को  Fexibility  तो बहुत मिलती है मगर एक Constraint भी होता है । इस Constraint  की चर्चा बह्र-ए-मीर की जब चर्चा करेंगे तो तब करेंगे।

ऐसी बहरो की Analysis मूल बह्र  -A-  और  -B- से करेंगे तो तक़्तीअ’ करने में /समझने में सुविधा होगी। 

जब आप 22--22--22--22 या 22--22--22--2 से करेंगे तो उलझन पैदा होगी और यह putting the Horse before the Cart वाली स्थिति होगी।

आप बह्र -A-  और बह्र  -B- याद कर रख लें -। बह्र-ए-मीर की चर्चा में इन दोनों बह्रों की ज़रूरत पड़ेगी जो मीर की बह्र समझने में आसानी पैदा करेगी ।


अगली क़िस्त में अब बह्र-ए-मीर की चर्चा करेंगे---


[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही  ज़रूर फ़र्माएँ   कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर


-आनन्द.पाठक-


उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 107 : बह्र 21---121---121--122 पर एक चर्चा

 किस्त 107 :  बह्र 21---121---121--122 पर एक चर्चा 


किसी मंच पर कुछ दिनों पहले मैने अपनी एक ग़ज़ल लगाई थी जिसके चन्द अश’आर थे


झूठे ख़्वाब  दिखाते क्यों हो ?
सच को तुम झुठलाते क्यों हो? 

जब जब लाज़िम था टकराना,
हाथ खड़े कर जाते क्यों हो  ? 

पाक अगर है दिल तो ’आनन’,
दरपन से घबराते क्यों हो ? 


 और मूल बह्र लिखी थी  21---121---121---122 और नोट में यह लिखा था कि अगर आमने -सामने  1-1 को =2 कर दें तो एक नया वज़न मिलेगा 22----22---22----22  मगर यह ’मीर की बह्र’ नहीं होगी।

इस पर मेरे कुछ मित्रों ने इस नोट पर  विस्तार की चर्चा की माँग की थी। यह आलेख उसी संदर्भ में लिखा गया है।

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मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि ’मीर की बह्र" के बारे में मेरे बहुत से दोस्तॊ को स्पष्टता नहीं है। यद्यपि मीर की बह्र के बारे में मैने एक लेख अपने ब्लाग 

पर विस्तार से लिखा हूँ , क़िस्त 59 [ https://www.arooz.co.in/2020/06/60.html]

www.arooz.co.in

इच्छुक पाठक गण वहाँ देख/पढ़ सकते हैं। आगामी क़िस्तों में यहाँ भी ’मीर की बह्र’ के बारे लिखता रहूँगा। 

अभी 

21--121--121--122 पर चर्चा करते है कि यह बह्र कैसे बनती है और इससे 22--22--22--22 का वज़न कैसे बरामद किया जा सकता है।

आप इस बह्र को तो बख़ूबी पहचानते होंगे

122-----122-----122-----122  [ बह्र-ए- मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम ] और आप लोगों ने इस बह्र/वज़न में काफ़ी शायरी भी की होगी।

अगर इन सालिम अर्कान पर अगर कुछ ज़िहाफ़ लगा दें तो क्या होगा? [ ज़िहाफ़ात तो आप लोग जानते होंगे। अगर नहीं तो इसके बारे में मेरे ब्लाग पर विस्तार से देखा जा सकता है।

क़िस्त 12 से क़िस्त 21 तक  www.arooz.co.in पर।

[ ज़िहाफ़ हमेशा सालिम रुक्न पर पर लगता है जबकि दो अमल [ तस्कीन-ए-औसत का अमल  और तख़्नीक़ का अमल ] ऐसे है जो सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ रुक्न [ यानी ज़िहाफ़ शुदा रुक्न]

पर ही लगते है ---सालिम रुक्न पर कभी नहीं लगते। इन दोनों अमल के बारे में अगले क़िस्त में विस्तार से चर्चा  करूँगा। अभी हम 

122---122---122---122 पर ही चर्चा केन्द्रित करते हैं। इसप्र हम दो ज़िहाफ़ --सरम -- और--कब्ज़ का ज़िहाफ़ लगाते हैं , देखते हैं क्या होता है?

 122+ सरम = असरम  21   [ सरम एक ख़ास ज़िहाफ़ है जो हमेशा  शे’र के इब्तिदा/असर के मुक़ाम पर ही लगते हैं।

122+ कब्ज़ = मक़्बूज़   121  [ क़ब्ज़ एक आम ज़िहाफ़ है जो शे;र के किसी मुक़ाम पर लग सकते है --यहाँ हस्व के मुक़ाम पर लगा कर देखते हैं।

122---122---122---122 की शकल

21--121--121---122  हो जाएगी यानी

फ़’अ लु--फ़ऊलु--फ़ऊलु--फ़ऊलुन

बह्र-ए-मुतक़ारिब  असरम मक़्बूज़ मक़्बूज़ सालिम अल आख़िर। इसे  हम अभी -A- से दिखाते है सुविधा के लिए। यानी


A= 21---121----121----122

इस बह्र की  मुजाइफ़ [ दो गुनी की हुई बह्र] भी मुमकिन है यानी

A // A = 21---121---121---122 // 21--121--121--122 

इस बह्र का नाम तो वही होगा जो -अ- का है बस एक शब्द मुज़ाइफ़ और जोड़ देंगे। यानी

बह्र-ए-मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ मक़बूज़ सालिम अल आख़िर मुज़ाइफ़

[ ध्यान देने की बात --मुज़ाहिफ़ और मुज़ाइफ़ दोनो अलग अलग शब्द हैं =मुज़ाहिफ़ --शब्द ज़िहाफ़ से बना है यानी जिस रुक्न पर ज़िहाफ़ लगा हो]

चूँकि अब यह , बह्र-ए-मुतक़ारिब की मुज़ाहिफ़ शकल हो गई तो अब इस पर ; तख़्नीक़’ का अमल हो सकता है ।

[ तखनीक़ और तस्कीन-ए-औसत का अमल क्या होता है और यह मुज़ाहिफ़ रुक्न पर कैसे काम करते है, इसकी क्या सीमाएँ है, ्क्या rider  है इस पर अलग से कभी चर्चा करेंगे।

 बस आप यहाँ  इतना ही समझ लें कि जब दो adjacent, मुज़ाहिफ़ रुक्न में 1-1 आमने सामने आ जाए तो वह -2-पर लिया जा सकता है ] यह अमल दो रुक्न पर साथ साथ

हो सकता है या सभी रुक्न पर एक साथ भी हो सकता है । और उस बदले हुए रुक्न मे मुख़्निक़ शब्द निशानदिही के लिए जोड़ देते है जिससे यह पता चलता रहे कि किस रुक्न

पर यह अमल किया गया है । 

जैसे

21-121--121---122 में [पहले + दूसरे रुक्न] पर तख़्नीख का अमल करें तो वज़न

22--21--121--122  हो जायेगा और नाम हो जाएगा

असरम, मक़्बूज़ मुख़्निक़, मक़्बूज़, सालिम

अगर हम [दूसरे+ तीसरे रुक्न ]पर यह अमल करें तो-

21----122---21---122 और नाम हो जायेगा 

असरम, मक़्बूज़, मक़्बूज़ मुख़्निक़, सालिम


और आप ऐसे ही अन्य  दो दो अर्कान पर क्रमश: अमल करते जाएँ।

यदि सभी अर्कान पर एक साथ तख़्निक़ का अमल कर दें तो क्या होगा ?

तो आप को यह वज़न मिलेगा

22---22---22---22-- 

बहुत से लोग इसे ही मीर की बह्र समझते है,मगर फिर भी यह मीर की बह्र नहीं होगी ।

[ मीर की बह्र पर आगे चर्चा करेंगे अभी हम उस मुक़ाम तक पहुंचने के लिए एक एक  सीढ़ी चढ़ रहे है--कॄपया धैर्य बनाए रखें]


आप बता सकते है कि 21--121--121--122 पर तख़्नीक के अमल से कितने नए औज़ान बरामद हो सकते हैं?

आप फ़ुरसत में स्वयं कर के देखें और बताएँ। 

एक दिलचस्प बात और--

यह सभी औज़ान मुतबादिल [ आपस में बदले जाने योग्य ] होते है। मतलब अगर आप ने मूल बहर 21--121--121---122 में ग़ज़ल कही है 

तो उस ग़ज़ल का कोई मिसरा इन्ही मुतबादिल औज़ान  के किसी एक वज़न मे होगा या होना चाहिए।

ऐसा क्यों?

ऐसी बह्र में .अगर आप ने सभी अर्कान पर तख़्निक़ का अमल कर दिया हो और वह लिस्ट आप के सामने हो [ मुझे उमीद है कि अबतक आप ने कर लिया होगा]

तो आप ध्यान से देखेंगे कि Individual  रुक्न का वज़न तो बदल रहा है मगर मिसरा का  Over all वज़न नहीं बदल रहा है । वह Constant ही

है यानी वज़न 16 का 16 ही है। इसीलिए इसे मुतबादिल वज़न कहते है कि ये तमाम दस्तयाब वज़न आपस में बदले जा सकते है और मिसरा के overall

वज़न पर कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा है।

ख़ैर

यही बात मुरब्ब: और मुसद्दस वाली बह्र पर भी लागू हो सकती है यानी

मुरब्ब:   22--22 या 22--22-// 22--22

22--22--22  या 22--22--22// 22--22-22

फिर भी यह मीर की बह्र नहीं है । यानी " जहाँ देखो मारियो--अपना समझ के खा लियो" -वाली बात नहीं है ।

अभी तक जितनी बातें की है सब अरूज़ के नियम क़ानून क़वायद के दायरे में ही बात की है। अभी तक अरूज़ के खिलाफ़वर्ज़ी की बात नहीं की है।

अब अगली क़िस्त में बह्र-ए- मुतक़ारिब से बरामद होने वाली दूसरी मुज़ाहिफ़ बह्र की बात करेंगे----

[नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही फ़र्मा दें कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर

-आनन्द.पाठक-

Saturday, October 5, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 106 : 221---1222 // 221---1222 का सही नाम क्या होगा ?

 क़िस्त 106 : 221---1222  // 221---1222 का सही नाम क्या होगा ?

[ नोट :यह लेख उनके लिए  जो अरूज़ से ज़ौक़-ओ-शौक़  फ़र्माते है या अतिरिक्त जानकारी रखना चाहते है। यहाँ एक बात स्पष्ट कर दूँ बिना इस जानकारी के भी  या इस बह्र का नाम जाने बिना भी आप इस बह्र में शायरी कर सकते है और लोग करते भी हैं--पढ़ कर परेशान होने की आवश्यकता नहीं है]

ख़ैर ।


आप इस बह्र से अवश्य परिचित होंगे । आप ने कभी न कभी इस बह्र में शायरी भी की होगी या ग़ज़ल कही होगी। बड़ी ही दिलकश लोकप्रिय मानूस बह्र हैऔर अमूमन सभी शायरों ने इस बह्र में ग़ज़लें कहीं है। इसी बह्र में इक़बाल की ग़ज़ल के चन्द अश’आर यहाँ लगा रहे हैं-

फिर बाद-ए-बहार आई इक़बाल ग़ज़लख़्वाँ हो

गुंचा है अगर, गुलहो, गुल है तो गुलिस्ताँ  हो ।


तू खाक की मुठ्ठी है ,अज़जा की हरारत से

बरहम हो, परीशाँ हो, वुसअत में बयाबाँ हो


तू जिन्स-ए-मुहब्बत है कीमत है गरां तेरी

कम-माया है सौदागर, इस देश में अरजाँ हो ।


[1] कुछ लोग इस बह्र का नाम  - हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम अख़रब सालिम --या- सिर्फ़ हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम या हज़ज मुसम्मन अख़रब भी कहते है।

[2] जब कि कुछ लोग इस बह्र का नाम --हज़ज मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़्न्निक सालिम अल आखिर-- बताते है॥

सवाल यह है कि --तो फिर इसका सही नाम क्या होगा?ज इस लेख में इसी पर विचार करेंगे।

यह बह्र बनती कैसे है ?

आप इस बह्र से तो अवश्य परिचित होंगे

--A--------B-------C---------D

1222----1222----1222-----1222

यानी 

मफ़ाईलुन----मफ़ाईलुन----मफ़ाईलुन--- मफ़ाईलुन

जी सही पकड़ा आप ने---यह बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम -- है

अब मुक़ाम [-A-} जो शे’र में सदर/इब्तिदा का मुक़ाम है पर एक ज़िहाफ़ --खर्ब - लगाते है और मुक़ाम [ -B- ] --[ -C- ] जिसे शे’र में हस्व का मुक़ाम कहते है पर -कफ़- का ज़िहाफ़ लगाते है देखते हैं क्या होता है।

1222+ ख़र्ब  = 221  [ अख़रब] = मफ़ऊलु यानी --लु-[1] मुतहर्रिक है

1222+ कफ़ =  1221 [मक्फ़ूफ़] = मफ़ाईलु यानी --लु-[1] मुतहर्रिक है

[ यह ज़िहाफ़ात सालिम रुक्न पर कैसे अमल करते है --इसके विस्तार में जाने की ज़रूरत नहीं --विषय दुरूह हो सकता है] बस आप इसे जान लीजिए या मान लीजिए ।

तो क्या बरामद होगा ?

221---1221---1221----1222

और नाम होगा -- बह्र-ए-हज़ज अख़रब मक्फ़ूफ़  मक्फ़ूफ़ सालिम अल आख़िर । और आप लोगों ने इस बह्र मे अवश्य ग़ज़ल कही होगी। 

अच्छा अब इस पर ’तख़नीक़ का अमल करते है देखते हैं क्या होता है?[ तख़नीक़ का अमल आप ज़रूर जानते होंगे । मैने अपने ब्लाग में इस पर विस्तार से चर्चा की है। फिर भी संक्षेप में बता दूँ---जब दो मुज़ाहिफ़ रुक्न [ ज़िहाफ़शुदा रुक्न] आमने-सामने हों  और तीन-मुतहर्रिक हर्फ़ लगातार एक साथ आ जाए तो बीच वाला मुतहर्रिक हर्फ़ --साकिन हो जाता है]

-1221---1221--- यानी [B] and [C]  पर अमल कर के देखते है । [ B ] का आख़िरी -1- [ लु-मुतहर्रिक और [C] का मुफ़ा [12] [ मींम और फ़े दोनों मुतहर्रिक] यानी तीन मुतहर्रिक [ लु--मीम--फ़े ] एक साथ लगातार आ रहा है तो बीच वाला --मींम--अब [साकिन ] हो कर  -लु- [ मुतहर्रिक] के साथ मिल कर --सबब [ सबब-ए-ख़फ़ीफ़=2] बनाएगा

तब  हस्व वाला पार्ट 1221---1221 = 1222-- 221 बन जाएगा

ध्यान देने की बात यह है कि यह --1222- तखनीक़ के अमल से बना है यह सालिम 1222 वाला 1222 नहीं है

उसी प्रकार  221 बचा हुआ पार्ट है और यह अख़रब वाला 221 नही है।

यानी अब समग्र रूप से देखें तो 

--A----B-----C------D

221--1222---221----1222 

A [ सदर/इब्तिदा वाला ] मुज़ाहिफ़ रुक्न --  अख़रब है

B [ हस्व वाला ]मुज़ाहिफ़ रुक्न---- मक्फ़ूफ़ है

C  [ हस्व वाला] मुज़ाहिफ़ रुक्न ---- मक्फ़ूफ़ मुख़नीक़ है

D [ अरूज़/ज़र्ब वाला]  तो सालिम रुक 1222 है ही ---इस पर कोई रद-ओ-अमल नहीं किया गया अभी तक।


अत: 221---1222 // 221---1222 का सही नाम --हज़ज मुसम्मन अख़रब मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़्न्निक सालिम अल आखिर-- होगा जो अरूज़ के क़ायदे क़ानून से बना है

बिना अरूज़ की नियमों की खिलाफ़वर्ज़ी किए हुए]

तो सवाल यह है कि  --हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम अख़रब सालिम --यह नाम सही क्यों नही हो सकता ?

इसलिए सही नहीं हो सकता कि ज़िहाफ़ -ख़र्ब--्केवल - सदर/इब्तिदा के मुक़ाम के लिए ख़ास है और वह --हस्व के मुक़ाम पर नही लाया जा सकता --हस्व के मुक़ाम पे लाने से अरूज़ के क़ायदे की खिलाफ़वर्जी होगी।

चलते चलते एक बात और--

यह बह्र --साथ साथ बह्र-ए-शिकस्ता भी है।

[ नोट -आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही फ़र्मा दें कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर

-आनन्द.पाठक-

Wednesday, September 18, 2024

उर्दू बह्र पर एकबातचीत : क़िस्त 105 : इज़ाफ़त में क्रिया का निर्धारण

 क़िस्त 105: इज़ाफ़त में क्रिया का निर्धारण

[ अतिरिक्त जानकारी के लिए आप क़िस्त 70--80---81 भी देख सकते हैं ]

पिछले क़िस्तों [ मसलन क़िस्त 70---क़िस्त 80---क़िस्त 81 ] में इज़ाफ़त और अत्फ़ के बारे में विस्तार से चर्चा कर चुका हूँ।

 आशा करता हूँ इज़ाफ़त और अत्फ़ क्या है, उर्दू शायरी में इनका क्या महत्व या क्या ज़रूरत है -कुछ हद तक आप लोगो ने समझ लिया होगा।

फिर भी संक्षेप में बता दूं कि दर्द-ए-दिल --ग़म-ए-इश्क़---वहशत-ए-दिल ---पैग़ाम-ए-हक़---ख़ाक-ए-वतन---बाम-ए-फ़लक--जल्वा-ए-हुस्न-ए-अजल --जू-ए-आब---राह-ए-मुहब्बत--- बहर-ए-बेकरां----कू-ए-उलफ़त--दर्द-ए-निहाँ --दिल-ए-नादां ---दौर-ए-हाज़िर -बर्ग-ए-गुल - बाद-ए-बहार---चिराग-ए-सहर ---

जैसे युग्म शब्दों को इज़ाफ़त कहते हैं [ जिसे कसरा-ए-इज़ाफ़त भी कहते हैं}

अरबी में क़सरा [उर्दू में ज़ेर] --इसलिए कहते हैं कि ऐसे युग्म शब्द में -" पहले शब्द के आखिरी हर्फ़ के नीचे एक ज़ेर या कसरा की अलामत [निशान] लगा देते हैं । [उर्दू वाले -ए-नही लिखते ] हम हिंदी वाले -ए- लिख कर इसे जताते और  बताते हैं। इस कसरा [ज़ेर] के प्रभाव से --वह आखिरी "हर्फ़’ मुतहर्रिक हो जाता है जो-1- का वज़न देता है। अगर उस आख़िरी हर्फ़ को खींच कर पढ़ेगे तो -2- का भी वज़न देगा

जैसे--गम-ए-दिल= 11 2 भी हो सकता है या 122 भी हो सकता है बह्र की माँग के अनुसार।

दिल-ए-नादाँ = 11 22 भी हो सकता है या 1222  भी हो सकता है बह्र की माँग के अनुसार।

यह फ़ारसी की तरक़ीब है और पुराने शायरों ने अमूमन सभी शायरों ने इसका प्रयोग किया है ख़ास तौर से ग़ालिब ने। आजकल हिंदी में इसका प्रयोग कम ही होता है और होता भी है तो कभी कभी तरकीब उलटी हो जाती है। ख़ैर।

आज हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि अगर दो शब्दों को जोड कर जो युग्म शब्द बनेगा तो वह कौन-सी  क्रिया [ फ़े’ल] अनुसरण करेगी ? यानी क्रिया स्त्रीलिंग होगी कि पुल्लिंग होगी ?

हम जानते हैं कि शब्द  या तो स्त्री लिंग [ मुअ’न्नस] होगा  या पुल्लिंग [ मुज़क्कर] होगा । 

आज इसी पर चर्चा करेंगे। 

दो शब्द जोड़ने पर 3-स्थितियाँ बन सकती है ।

स्थिति 1= अगर दोनो शब्द पुल्लिंग [ मुजक्कर] हों तो स्वभावत: क्रिया पुल्लिंग शब्द का अनुसरण करेगी। जैसे इस शे’र से स्पष्ट है

हिज्र की शब, नाल:-ए-दिल वो सदा देने लगे

सुनने वाले रात कटने की  दवा देने लगे ।

-साक़िब लखनवी

नाल: = पुलिंग

दिल = पुल्लिंग

क्रिया = देने लगे-- पुल्लिंग

[ ऐसे ही आप बहुत से उदाहरण खोज सकते हैं}

स्थिति 2 = अगर दोनो शब्द स्त्री लिंग [ मुअ’न्नस] हो तॊ स्वभावत: क्रिया स्त्रीलिंग शब्द का अनुसरण करेगी । जैसे इन शे’रों से स्पष्ट है--

फिर आज आई थी इक मौज-ए-हवा-ए तरब

सुना गई है फ़साने इधर उधर के  मुझे ।

-नासिर काज़मी-

   मौज़ = स्त्रीलिंग

  हवा  = स्त्रीलिंग

क्रिया -= आई थी 

 [ ऐसे ही आप बहुत से उदाहरण खोज सकते हैं}

स्थिति 3= अगर एक शब्द पुल्लिंग हो और दूसरा शब्द स्त्री लिंग हो तो ? तब क्रिया पहले शब्द के लिंग के अनुसार अनु्सरण करेगी ]

         मुझको मौज-ए-नफ़स देती है पैग़ाम-ए-अजल

        लब उसी मौज़-ए-नफ़स से है नवा-पैरा तेरा ।  -

                                            --इक़बाल

मौज़= स्त्रीलिंग

नफ़स=पुल्लिंग

क्रिया मौज़ के अनुसार --देती है-[स्त्रीलिंग]


चमन से रोता हुआ मौसम-ए-बहार गया

शबाब सैर को आया था, सोगवार गया ।    

                                            -इक़बाल

मौसम = पुल्लिंग

बहार =  स्त्रीलिंग

क्रिया -मौसम- के अनुसार --रोता हुआ गया -।


शम्मअ-ए-मज़ार थी ,न कोई सोगवार था

तुम जिस पर रो रहे थे ये किसका मज़ार था।

                                        -बेख़ुद देहलवी-

शम्मअ’ = स्त्रीलिंग

मज़ार    = पुल्लिंग

क्रिया --शम्मअ’ के अनुसार --थी।]

{[ ऐसे ही आप बहुत से उदाहरण खोज सकते हैं} 

और आप स्वत: चेक कर सकते हैं

 उर्दू में कुछ शब्द ऐसे है जो दोनॊ लिंग में  प्रयोग होते है जैसे-चर्चा --सोच 

आप जो क्रिया लगाना चाहें } जैसे -आप की सोच/ आप का सोच

उनकी चर्चा/ उनका चर्चा --शब भर रहा चर्चा तेरा --


हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम 

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता 

                        -अकबर इलाहाबादी-

आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही फ़र्मा दें कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर

-आनन्द.पाठक


Wednesday, September 4, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 104: तुम इतना जो मुस्करा रहे हो--की बह्र क्या"

 

क़िस्त 104  : " तुम इतना जो मुस्करा रहे हो"  मिसरे की बह्र क्या होगी? "


किसी मंच पर किसी मित्र ने एक प्रश्न पूछा है इस मिसरे की बह्र क्या है। यह आलेख उसी संदर्भ में है।

पहले तो यह स्पष्ट कर दूँ कि 

1- कभी कभी किसी एक मिसरे से सही सटीक बह्र नही निकाली जा सकती।

2- सही सटीक बह्र निकालने के लिए अगर 3-4 शे’र हो तो बेहतर। शे’र जितने ज़ियादें होंगे बह्र उतनी ही

सही और सटीक निकलेगी । अगर पूरी ग़ज़ल हो तो फिर बात ही क्या।

3- कुछ मित्रों ने इस एक मिसरे की बह्र अपने अपने तरीके से बताई । किसी ने इसे मीर कि बह्र बताई किसी ने 

इसकी बह्र   २२१२२ - १२१२२ बताई [ नाम नही बताया ] ख़ैर।

4- किसी भी शे’र का सही सही बह्र निकालने /जाँचने का सबसे सही तरीका उसकी सही सही तक़्तीअ’ करना है।

वैसे भी तक़्तीअ दो प्रकार की होतॊ है

-- हक़ीक़ी तक़्तीअ’

-- ग़ैर हक़ीक़ी तक़्तीअ’

[ इस विषय पर किसी और दिन बात करूँगा]


3- अपने एक मित्र से इसकी पूरी ग़ज़ल मँगवाई -बह्र निर्धारण के लिए। तो मालूम हुआ कि यह जनाब क़ैफ़ी आज़मी [ मरहूम] साहब की

ग़ज़ल है जो फ़िल्म ’अर्थ [1982] में प्रयोग हुआ है। 


तुम इतना जो मुस्करा रहे हॊ

क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो ।


आँखों में नमी, हँसी लबों पर

क्या हाल है क्या दिखा रहे हो ।


बन जाएँगे ज़ह्र पीते पीते -

ये अश्क़ जो पीते जा रहे हो।


जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है

तुम क्यूँ उन्हें छेड़े  जा रहे हो ।


रेखाओं का खेल है मुकद्दर

रेखाओं से मात खा रहे हो ।



इस ग़ज़ल की तक्तीअ के आधार पर मैने इस ग़ज़ल [ इस मिसरे की भी ] बह्र निकाली है [ यह मानते हुए कि जिसने यह ग़ज़ल उन्होने सही

नकल कर के भेजी होगी। शायद उन्होने ’रेख्ता’ साइट से किया है। ख़ैर

पाठको की सुविधा के लिए तक़्तीअ’ यहाँ पेश कर रहा हूँ  । मैने इसकी बह्र

221---1212----122 [ बह्र-ए-हज़ज मुसद्दस अख़रब मक़्बूज़ महज़ूफ़] निकाली है।

 तक़्तीअ’ कर के देखते हैं।


2    2   1  / 1  2    1  2  / 1 2 2 

तुम इतना/ जो मुस करा /रहे हॊ

क्या ग़म है/ जिस को छुपा/ रहे हो । -1


आँखों में /नमी, हँसी/ लबों पर

क्या हाल/ है क्या दिखा/ रहे हो । -2


बन जाएँ/गे ज़ह्र पी/ते पीते -

ये अश्क़ /जो पीते जा /रहे हो। -3


जिन ज़ख़्मों /को वक़्त भर/ चला है

तुम क्यूँ उ/न्हे छेड़े  जा /रहे हो । -4


रेखाओं /का खेल है /म कद दर

रेखाओं / से मात खा/ रहे हो । -5


टिप्पणियां~

शे’र 1--कुछ लोगों का मानना है कि मतला के मिसरा सानी --जिस [2]- पर बह्र टूट रही है। अगर -जिस को[2 2]  की जगह  ’जिसे’ [1 2] होता तो बेहतर होता।

बात तो सही है फिर तो कुछ विवाद न होता।

मगर क़ैफ़ी साहब ग़लत नहीं थे-- वो भी सही थे  -। शायरी  मक़्बूती [ लिखित] के अलावा  मलफ़ूज़ी [ उच्चारण के आधार पर ] भी निर्भर करती है।

अगर आप -जिस - पर ज़रा ज़ियादा ज़ोर दे कर -एक ठहराव दे कर पढे तो यह ’ मुतहर्रिक [1] का वज़न देगा।  -स- यूँ ही साकिन है। -स- अपनी आवाज़ नहीं देगा।

अत: -जिस- को -1- की वज़न पर लेना ग़लत नहीं होगा ।


शे’र 5 -- में कुछ लोगों को -रेखाओं-[ 2 2 1 ] पर लेने की आपत्ति थी । यहाँ -ओं- को -1- की वज़न पर लिया गया है। यानी शे’र की अदायगी में --ओ- को खीच कर नहीं

बल्कि दबा कर लगभग -अ-[1] की आवाज़ तक यानी मात्रा पतन कर  पढ़ना होगा जो कि किया जा सकता है ।


आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं ग़लत तक़्तीअ हो गई हो तो निशानदिही फ़र्मा दें कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।

सादर

-आनन्द.पाठक



Monday, July 1, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 103 : 2122---1212---2122--22 क्या यह एक बह्र हो सकती है ?

 सवाल : क्या 2122-- 1212-- 2122 --22 यह कोई बहर हो सकती है ? 🌹


उत्तर: किसी मंच पर मेरे एक मित्र ने उक्त प्रश्न किया। और मित्र ने अपनी एक ग़ज़ल भी इसी बह्र में पेश की ।
इस सवाल पर अन्य मित्रों ने अपनी अपनी राय भी रखी ब। जैसे -
1- एक मित्र ने इसे 2122---1212--112/22 के आस-पास की बात की
2- एक मित्र ने कहा- अरकान के एक ख़ास पैटर्न को हर मिसरे में दोहराना ही तो है। ये बात दीगर है कि ग़ैर रिवायती बहर में लय होगी या नहीं।
3- किसी ने कहा -बिलकुल [ हो सकती है ] । मगर उन्होने वज़ाहत नहीं फ़र्माई ।
------

उत्तर - ऐसे सवाल से मुझे प्रसन्नता होती है कि इसी बहाने मुझे अपनी जानकारी को फिर से दुहराने और परखने का मौक़ा मिलता है ,
नए तरीके से सोचने का मौक़ा मिलता है।
चूँकि एक मित्र ने बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ की तरफ़ इशारा किया है तो इस बह्र को उसी नुक़्त-ए-नज़र देखते है कि क्या हो सकता है ।
------
बह्र-ए- ख़फ़ीफ़ एक मुरक्कब बह्र है जिसके बुनियादी अर्कान निम्न लिखित हैं । यह बह्र सामान्य तौर पर ’ मुसद्दस’ रूप में ही प्रचलन में है, मक़्बूल है।
2122---2212---2122 =A--B--A
अरूज़ में एक व्यवस्था यह भी है [ कमाल अहमद सिद्दकी के अनुसार ] कि ऐसी बह्र जो A--B--A के फ़ार्म में हो अगर उसे मुसम्मन फ़ार्म में प्रयोग करना हो तो
A--B--A --B फ़ार्म मे प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि यह तरीक़ाआम प्रचलन में नहीं है ।

एक पल के लिए मान लीजिए कि इसका मुसम्मन फ़ार्म प्रयोग में लाते हैं तो --
बह्र की शक्ल होगी
--A------B------C------D
2122----2212---2122--2212 [ यानी बह्र--ए-ख़फ़ीफ़ मुसम्मन ]

ब -B- [ हस्व के मुक़ाम पर] और -D- [ अरूज़ और ज़र्ब के मुक़ाम पर ] मान्य ज़िहाफ़ लगाते है --देखते हैं क्या होता है।
-B- 2212 + खब्न = 1212 [ मख़्बून]---जो हस्व के मुक़ाम पर लाया जा सकता है , जो मुसद्दस शकल में आता भी है ।
-D- 2212 + हज़ज़ = 22 [ अहज़ या महज़ूज़ ] जो अरूज़/ज़र्ब मुक़ाम के लिए ख़ास है [ इसे हज़्फ़/महज़ूफ़ से confuse न कीजिएगा।
तो 2122---2212---2122---2212 की शकल ज़िहाफ़ के अमल के कारण हो जाएगी
2122---1212---2212---22-यही वह बह्र है -जिसे मित्र ने शंका निवारण के लिए पूछा है।
इसका नाम होगा-बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसम्मन मख़्बून महज़ूज़ -
यह बात अलग है की यह बहुत आम बह्र नहीं है ।बहुत प्रचलन में नही है --बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस के मुक़ाबिल। चूँकि यह अरूज़ के क़ायदे क़ानून के मुताबिक़
बरामद हुई है सो यह मान्य बह्र हो सकती है और इसमे शायरी की जा सकती है अगर आप कर सकते हैं तो ।
इस लेख का उद्देश्य मात्र यह है कि अरूज़ इस विषय पर क्या बोलता है --पाठकों को स्पष्ट हो सके ।

[इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर इस हक़ीर फ़क़ीर से कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो बराए मेहरबानी
निशानदिही फ़रमाए कि यह राकिम आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सके ।
सादर

-आनन्द.पाठक-

Sunday, June 23, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : किस्त 102 :बह्र ---212---212----212---2122 क्या यह एक बह्र हो सकती है ?

 उर्दू बह्र पर एक बातचीत : किस्त 102 :

क्या यह सही बह्र है ---212---212----212---2122 ??

कल किसी मंच पर मेरे एक मित्र ने सवाल किया था--
सवाल -क्या ये सही बहर है?
क्या इस बहर पे लिख सकते हैं ?
मुतदारिक मुसम्मन सालिम मुरफ्फल
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलातुन
212 212 212 2122 या
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फे
212 212 212 212 2
जवाब : [ जहाँ तक मेरी जानकारी है और जितनी मेरी समझ है, उस आधार पर एक जवाब देने की कोशिश कर रहा हूँ किसी ने बात छेड़ी तो मैं चला आया]]
इस सवाल को थोड़ा संशोधित कर के यूँ लिख देता हूँ --चर्चा करने में सुविधा होगी
[A] 212---212---212---2122
[B] 212---212---212---2
[C] 212--212--212---212--2

[ 212-- यानी- फ़ाइलुन- 2122 बोले तो फ़ाइलातुन और 2- बोले तो फ़े]

[A ] 212---212---212--2122 जी बिलकुल सही और वैध बह्र है और अरूज़ के क़ायदे के मुताबिक हासिल हुई है। यह बात अलग है कि यह बहुत प्रचलन में नहीं है । मगर इस बह्र में शायरी करने की मनाही भी नहीं है । आप शायरी कर सकते है अगर आप कर सकते है।
वैध बहर क्यों है?
अगर आप फ़ाइलुन [212] पर तरफ़ैल [ एक ज़िहाफ़ का नाम ] लगाएँ तो जो शे’र के अरूज़ और ज़र्ब मुक़ाम के लिए खास ज़िहाफ़ है तो
212 + तरफ़ेल [ज़िहाफ़] = मुरफ़्फ़ल 2122 हासिल होगा । अत:
212---212----212---2122
और नाम होगा -मुतदारिक मुसम्मन सालिम मुरफ़्फ़ल- जो मेरे मित्र ने सही नाम लिखा है ।

[B ] 212---212---212--2 भी एक सही बह्र है और यह भी अरूज़ के क़ायदे से ही बरामद होती है।
अगर आप 212 पर हज़ज़ [ एक ज़िहाफ़ का नाम है--ध्यान रहे यह सालिम बह्र हज़ज का नाम नही है और न ही यह हज़्फ़ ज़िहाफ़ है ] तो
212 + हज़ज़ [ज़िहाफ़] = महज़ूज़ 2 हासिल होगा । [ कहीं कहीं इस महज़ूज़ को अहज़ भी कहते हैं ] यह भी एक ख़ास ज़िहाफ़ है जो शे’र के ख़ास मुक़ाम
अरूज़/ ज़र्ब पर ही लगते है।
और इसका बह्र का नाम होगा --मुतदारिक मुसम्मन सालिम अहज़ [ या महज़ूज़]
ध्यान रहे यह दोनो ज़िहाफ़ -रुक्न -के आख़िरी टुकड़े -- वतद -[इलुन] पर अमल करते हैं
एक दिलचस्प बात और--
अगर इस बह्र के आखिरी -2- को --उसके पहले रुक्न से जोड़ दे तो --यानी
212--212--2122 हो जायेगा --यानी मुतदारिक मुसद्दस सालिम मुरफ़्फ़ल
अरूज़ एक दिलचस्प विषय है अगर आप को इसमे दिलचस्पी हो तो ।

[C ] यह बह्र भी बह्र [B ] जैसा ही है बस फ़र्क यह है कि एक मिसरे में -5 अर्कान का प्रयोग किया है यानी एक शे’र में 10 अर्कान ।
वैसे क्लासिकल अरूज़ में एक शे’र में ्ज़ियादा से ज़ियादा 8-अर्कान [यानी मुसम्मन ] या इसकी मुज़ाइफ़ शकल [ दो-गुनी की हुई] का ही ज़िक्र मिलता है
वैसे 10-अर्कान में भी शे’र [या ग़ज़ल ] कहे गए है मनाही नहीं है ।मगर बहुत कम कहे गए है। फ़नी एतबार से कहें गए हैं । आटे में नमक के बराबर ।मगर यह बह्र आम प्रचलन में नहीं है।
अरूज़ में ज़िहाफ़ के कारण ऐसी स्थितियाँ पैदा हो जाती है कि एक बह्र के दो नाम हो जाते है या एक ही बह्र दो-तरीकों से हासिल किए जा सकते है । ऐसी ही एक बह्र
1212---1212--1212--1212 भी है जो दो-मुख्तलिफ़ तरीके से हासिल हो सकती है और इसके दो मुख़्तलिफ़ नाम भी होंगे।
यह तो शायर ही बता सकता है कि -actually -वह किस बह्र में अपनी ग़ज़ल कही है।

[इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर इस हक़ीर फ़क़ीर से कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो बराए मेहरबानी निशानदिही फ़रमाए कि यह राकिम आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सके ।
सादर

-आनन्द.पाठक-