उर्दू बह्र पर एक बातचीत : किस्त 102 :
क्या यह सही बह्र है ---212---212----212---2122 ??
कल किसी मंच पर मेरे एक मित्र ने सवाल किया था--
सवाल -क्या ये सही बहर है?
क्या इस बहर पे लिख सकते हैं ?
मुतदारिक मुसम्मन सालिम मुरफ्फल
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलातुन
212 212 212 2122 या
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फे
212 212 212 212 2
जवाब : [ जहाँ तक मेरी जानकारी है और जितनी मेरी समझ है, उस आधार पर एक जवाब देने की कोशिश कर रहा हूँ किसी ने बात छेड़ी तो मैं चला आया]]
इस सवाल को थोड़ा संशोधित कर के यूँ लिख देता हूँ --चर्चा करने में सुविधा होगी
[A] 212---212---212---2122
[B] 212---212---212---2
[C] 212--212--212---212--2
[ 212-- यानी- फ़ाइलुन- 2122 बोले तो फ़ाइलातुन और 2- बोले तो फ़े]
[A ] 212---212---212--2122 जी बिलकुल सही और वैध बह्र है और अरूज़ के क़ायदे के मुताबिक हासिल हुई है। यह बात अलग है कि यह बहुत प्रचलन में नहीं है । मगर इस बह्र में शायरी करने की मनाही भी नहीं है । आप शायरी कर सकते है अगर आप कर सकते है।
वैध बहर क्यों है?
अगर आप फ़ाइलुन [212] पर तरफ़ैल [ एक ज़िहाफ़ का नाम ] लगाएँ तो जो शे’र के अरूज़ और ज़र्ब मुक़ाम के लिए खास ज़िहाफ़ है तो
212 + तरफ़ेल [ज़िहाफ़] = मुरफ़्फ़ल 2122 हासिल होगा । अत:
212---212----212---2122
और नाम होगा -मुतदारिक मुसम्मन सालिम मुरफ़्फ़ल- जो मेरे मित्र ने सही नाम लिखा है ।
[B ] 212---212---212--2 भी एक सही बह्र है और यह भी अरूज़ के क़ायदे से ही बरामद होती है।
अगर आप 212 पर हज़ज़ [ एक ज़िहाफ़ का नाम है--ध्यान रहे यह सालिम बह्र हज़ज का नाम नही है और न ही यह हज़्फ़ ज़िहाफ़ है ] तो
212 + हज़ज़ [ज़िहाफ़] = महज़ूज़ 2 हासिल होगा । [ कहीं कहीं इस महज़ूज़ को अहज़ भी कहते हैं ] यह भी एक ख़ास ज़िहाफ़ है जो शे’र के ख़ास मुक़ाम
“अरूज़/ ज़र्ब पर ही लगते है।
और इसका बह्र का नाम होगा --मुतदारिक मुसम्मन सालिम अहज़ [ या महज़ूज़]
ध्यान रहे यह दोनो ज़िहाफ़ -रुक्न -के आख़िरी टुकड़े -- वतद -[इलुन] पर अमल करते हैं
एक दिलचस्प बात और--
अगर इस बह्र के आखिरी -2- को --उसके पहले रुक्न से जोड़ दे तो --यानी
212--212--2122 हो जायेगा --यानी मुतदारिक मुसद्दस सालिम मुरफ़्फ़ल
अरूज़ एक दिलचस्प विषय है अगर आप को इसमे दिलचस्पी हो तो ।
[C ] यह बह्र भी बह्र [B ] जैसा ही है बस फ़र्क यह है कि एक मिसरे में -5 अर्कान का प्रयोग किया है यानी एक शे’र में 10 अर्कान ।
वैसे क्लासिकल अरूज़ में एक शे’र में ्ज़ियादा से ज़ियादा 8-अर्कान [यानी मुसम्मन ] या इसकी मुज़ाइफ़ शकल [ दो-गुनी की हुई] का ही ज़िक्र मिलता है
वैसे 10-अर्कान में भी शे’र [या ग़ज़ल ] कहे गए है मनाही नहीं है ।मगर बहुत कम कहे गए है। फ़नी एतबार से कहें गए हैं । आटे में नमक के बराबर ।मगर यह बह्र आम प्रचलन में नहीं है।
अरूज़ में ज़िहाफ़ के कारण ऐसी स्थितियाँ पैदा हो जाती है कि एक बह्र के दो नाम हो जाते है या एक ही बह्र दो-तरीकों से हासिल किए जा सकते है । ऐसी ही एक बह्र
1212---1212--1212--1212 भी है जो दो-मुख्तलिफ़ तरीके से हासिल हो सकती है और इसके दो मुख़्तलिफ़ नाम भी होंगे।
यह तो शायर ही बता सकता है कि -actually -वह किस बह्र में अपनी ग़ज़ल कही है।
[इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर इस हक़ीर फ़क़ीर से कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो बराए मेहरबानी निशानदिही फ़रमाए कि यह राकिम आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सके ।
सादर
-आनन्द.पाठक-