Saturday, June 15, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 100:: 22--22---22---22 जैसी बह्र के बारे मे [ क़िस्त 02 अन्तिम]

  एक चर्चा : 22--22--22--22--- जैसी बह्र पर--[ क़िस्त 02 ]


पिछली क़िस्त में चर्चा किया था कि कैसे
212--212---212---212 [ बह्र-ए-मुतदारिक] से ज़िहाफ़ की बदौलत
112---112---112--112- या फ़िर
22---22----22---22 बह्र/ वज़न प्राप्त की जा सकती है। या इसकी मुज़ाइफ़ [ दो गुनी] शकल [ 16-रुक्नी]
22--22--22--22--// 22--22---22--22 भी प्राप्त की जा सकती है जिसे हम लोग गलती से मीर की बह्र समझ लेते है।
एक बात ज़ाहिर कर दूँ ---अरूज़ के RULEs एक तरह-- शायरों द्वारा USE एक तरफ़।
Technically 112---112---112---112--// 112---112---112---112 वज़न बरामद तो हो सकती है और होती भी है और इसके कई
मुतबादिल [ आपस में बदले जाने वाले] वज़न भी हासिल किए जा सकते हैं ।
मगर
शायरों ने इसके एक ख़ास मानूस और मक़्बूल वज़न ही प्रयोग किए है जो बड़ा ही दिलकश आहंग है। जैसे
[1] [ 22--112]---[22--112 ] ---[22--112 ] ---[ 22-112 ]
अब्दुल हमीद ’अदम’ साहब की ग़ज़ल के चन्द अश’आर आप के लिए पेश कर रहा हूँ [ तक्तीअ’ कर के आप मुतमुईन हो लें ]

मयख़ान-ए-हस्ती में अकसर हमअपना ठिकाना भूल गए
या होश में जाना भूल गए या होश में आना भूल गए

मालूम नही आइने में चुपके से हँसा था कौन "अदम"
हम जाम उठाना भूल गए वो साज बजाना भूल गए ।

एक और उदाहरण शकील बदायूनी साह्ब की ग़ज़ल के चन्द अश;आर देखते हैं [ तक्तीअ’ आप कर लें]

करने दो अगर कत्ताल-ए-जहाँ तलवार की बातें करते है
अर्जाँ नहीं होता उनका लहू जो प्यार की बातें करते हैं

ये अहल-ए-क़लम, ये अहल-ए-हुनर देखो तो ’शकील इन सबके जिगर
फ़ाकों से हैं दिल मुरझाए हुए, दिलदार की बातें करते है ।

ऐसे और बहुत से शे’र-ओ-सुखन मिल जाएंगे ।
एक बात और
जब कि उसी तस्कीन-ए-औसत के अमल से यह भी बह्र बरामद हो सकती थी
[112---22] --[112--22]--[112--22 ] --[112--22]
आप चाहें तो इस वज़न में शायरी कर सकते हैं यदि कर सकते हैं तो ।
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कल एक माननीय सदस्या ने इसी संदर्भ में एक प्रश्न किया था--
"--22 22 22 22 को 112 112 112 112 के अलावा 121 121 112 112 या 112 121 211 211 आदि तरह से यानी मीर की बह्र जैसा लिया जा सकता है ?या नही"
जिसका मैने जवाब दिया था---नहीं
हाँ ऐसी ही एक मिलती जुलती एक मुज़ाहिफ़[ ज़िहाफ़ लगा हुआ ] और मुज़ाइफ़ [ दो गुनी की हुई] एक बह्र और है
121---22 / 121--22 / 121--22 / 121--22
इस पर बाद में कभी विस्तार से बात करूंगा ।
आज इतना ही ।
[इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर इस हक़ीर फ़क़ीर से कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो बराए मेहरबानी
निशानदिही फ़रमाए कि यह राकिम आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सके ।
सादर
-आनन्द.पाठक-










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