क़िस्त 92 : यह कौन सी बह्र है ?
2122---1122---1122---22
[ नोट-अरूज़ बहुत ही आसान, रोचक और दिलचस्प विषय है अगर इसे विधिवत और ध्यान से पढ़ा जाए, धैर्य और लगन से समझा जाए और तलब बनाए रखा जाए। ख़ैर।
पिछले दिनों चर्चा परिचर्चा के क्र्म में मेरे एक मित्र ने सवाल किया कि
2122---1122---1122---22 यह कौन सी बह्र है?
एक लाइन में इसका जवाब है - बह्र-ए-रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ -और अर्कान है
फ़ाइलातुन--फ़अ’लातुन--फ़ अ’लातुन--फ़अ’लुन
अगर आप इस जवाब से सन्तुष्ट है तो आगे कि बात ही खत्म। इतना ही काफ़ी है -शायरी करने के लिए।
अगर आप इतने से सन्तुष्ट नहीं है और आप की प्यास अभी बुझी नहीं, मज़ीद जानने की तलब बनी हुई है
तो आगे बढ़ते है कि यह बह्र कैसे बनी, यह नाम कैसे पड़ा वग़ैरह वग़ैरह।
यह बह्र कैसे बनी ?
आप इस बह्र को तो पहचानते होंगे--और नाम भी जानते होंगे।
[क] 2122---2122---2122---2122
-A- ----B------C-----D
बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम । सही ?
आप यह भी जानते हीं होंगे कि किसी शे’र में
-A- के मुक़ाम को सदर/इब्तिदा कहते है
-B--C-- के मुक़ाम को हस्व कहते है
-D- ले मुक़ाम को जर्ब’/अरूज़ कहते हैं
अब इस बह्र पर कुछ ज़िहाफ़ का अमल करते हैं। वैसे इल्मे--ज़िहाफ़ खुद में एक विस्तृत विषय है । ऎ कैसे अमल करते है, इनकी शर्ते क्या है-अभी इस पर बात नही करेंगे। परन्तु संक्षेप में एक दो बात कर लेते है।
ज़िहाफ़ 2-प्रकार के होते है
1- आम ज़िहाफ़ = जो शे’र के किसी मुक़ाम पर लग सकता है यानी -A- ----B------C-----D कहीं भी लगाया जा सकता है जैसे ख़्बन -क़ब्ज़-रफ़अ’-वग़ैरह
2- ख़ास ज़िहाफ़ = जो शे’र के ख़ास मुक़ाम पर ही लग सकता है यानी या तो -A- मुक़ाम पर लग सकता है या फिर -D- मुक़ाम पर जैसे ्हज़्फ़-कस्र-ख़रम-- वग़ैरह।
हज़्फ़ -एक ऐसा ही ख़ास ज़िहाफ़ है जो सिर्फ़ --ड- मुक़ाम पर [ अरूज़/जर्ब] ही लगता है और इस ज़िहाफ़ की अमल से सालिम रुक्न [2122] की शकल
बदल जाती है -इस बदली हुई शक्ल या बरामद रुक्न को महज़ूफ़ कहते है ।यानी
2122+ हज़्फ़ = 22 [ यह 2122 की महज़ूफ़ शकल है।
[क] 2122---2122---2122---22 अब इस बह्र को क्या कहेंगे? कुछ नहीं SIMPLE
बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम महज़ूफ़
ख़ब्न = एक आम ज़िहाफ़ है जो शे’र के किसी मुक़ाम पर लगाया जा सकता । एक साथ लगाया जा सकता है या एक -एक रुक्न पर लगाया जा सकता है।
और इस ज़िहाफ़ के अमल से सालिम रुक्न [2122 ] की शकल बदल जाती है और इस बदली हुई शकल या बरामद रुक्न को ’मख़्बून’ कहते है। यानी
2122 + ख़ब्न = 1122 [ यह 2122 की मख़्बून शकल है। मगर अब इस ज़िहाफ़ को मुक़ाम -D- पर नहीं लगा सकते क्यों कि उस मुक़ाम को मैने ALREADY
हज़्फ़ ज़िहाफ़ लगा कर LOCK कर रखा है।
यानी
2122---2122---1122---22
या
2122--1122---1122--22 [ जो आप का सवाल है।
एक दिलचस्प बात --इन दोनॊ बह्रों का नाम-क्लासिकल अरूज़ के हिसाब से - एक ही होगा
बह्र-ए- रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ ।
क्लासिकल अरूज़ के नामकरण पद्धति कुछ कमियाँ थी --इससे यह पता नही चलता है कि ’ख़ब्न’ वाला ज़िहाफ़ किस मुक़ाम पर लगा है।
अत: आधुनिक नाम प्रणाली में यह कमी दूर कर ली गई। अब इसका नाम होगा
बह्र-ए-रमल मख़बून मख़्बून महज़ूफ़ ---बिलकुल स्पष्ट की ख़्बन वाला ज़िहाफ़ किस किस मुक़ाम पर लगा है । NO CONFUSION |
अच्छा। एक बात और--
यह ख्बन वाला ज़िहाफ़ जब आम ज़िहाफ़ है तो -A- पर क्यॊं नही लगा सकते। बिलकुल लगा सकते है।
लगा कर देखते हैं क्या होता है।
1122--1122--1122--22 होगा
नाम वही होगा --बहर-ए-रमल मख़्बून मख़्बून महज़ूफ़ ही रहेगा।
अब आप कहेंगे कि इसमे 2122 तो दिखाई नहीं दे रहा है तो रमल का नाम क्यों?
भई -- घर तो मूलत: उसी का है तो नाम उसी का ही रहेगा तो ही पता चलेगा कि यह बह्र किस वंश परम्परा की है और इस पर कौन कौन से ज़िहाफ़ अमल कर सकते है।
ख़ैर --अब बात RULES बनाम परम्परा /रिवायत की ।
TECHNICALLY -A- मुक़ाम पर खब्न का ज़िहाफ़ लगा तो सकते है मगर परम्परा और रवायत यह है कि इस बह्र में सभी मुक़ाम पर एक साथ ज़िहाफ़ लगाना उचित नही माना जाता।
इसी लिए ऐसे बहर में कहा जाता है -A- मुकाम पर -2- को -1-किया जा सकता है। यह छूट है शायर को.लाइसेन्स है।
यही FUNDA--बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ वाले में भी था यानी
2122---1212---22 [ यानी पहले वाले -2- के मुक़ाम -1-लाया जा सकता है यानी 1122 किया जा सकता है --कारण वहाँ भी ख़्बन का ज़िहाफ़ लगता है
न हो तो , एक बार चेक कर लें ।
सादर
-आनन्द.पाठक-
[ नोट --इस मंच केअसातिज़ा से गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़रमाएँ ताकि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूँ }
Edited on 17-06-24
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