एक चर्चा : बह्र 122---122---122---12 का सही नाम ?
[ नोट - यह आलेख उन लोगों के लिए है जो अरूज़, बह्र, वज़न आदि में दिलचस्पी रखते हैं या ज़ौक़-ओ-शौक़ फ़रमाते है।
कारण ? चूँकि यह सवाल अरूज़ का है, ग़ज़ल का है, बह्र का है तो जवाब भी अरूज़ के क़ायदे, क़ानून , रुल्स के हिसाब से ही दिए जा सकते हैं।
अतिरिक्त जानकारी के लिए अन्य लोग भी पढ़ सकते हैं ।]
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इसी मंच पर एक बह्र [ 122---122----122---12--] पर बहस चल रही है ।
किसी ने कहा मक्सूर है , किसी ने कहा महज़ूफ़ है
मैने कहा महज़ूफ़ है ---शब भर रहा चर्चा तेरा ।
[ महज़ूफ़ --मक्सूर मुज़ाहिफ़ रुक्न का नाम है ]
महज़ूफ़ या मक्सूर पर लोगों की अपनी अपनी दलीलें हो सकती हैं। मैं महज़ूफ़ के हक़ में अपनी वज़ाहत [ स्पष्टीकरण पेश कर रहा हूँ।
अगर यह बह्र 122--122--122--122 होती तो इसके नाम में कोई लफ़ड़ ही नहीं होता--सीधा नाम --सीधी बहर
बह्र--ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
मगर जब इस पर ज़िहाफ़ लगा हो [ यहाँ आख़िरी रुक्न पर ज़िहाफ़ लगा है] --तो बह्र का नाम क्या होगा ?
वैसे ज़िहाफ़ का विषय तो बहुत विस्तृत है फिर भी आगे बढ़ने से पहले थोड़ा ज़िहाफ़ के बारे में संक्षेप में चर्चा कर लेते है।
ज़िहाफ़ एक प्रकार का अरूज़ी अमल है जो सालिम रुक्न पर लगता है और सालिम रुक्न के वज़न को परिवर्तित कर देता है। और बह्र का नाम भी उसी
अनुसार बदल जाता है।
लगभग 50 ज़िहाफ़ात में से निम्नलिखित 2-ज़िहाफ़ भी शामिल हैं--
--हज़्फ़
-- कस्र
सालिम रुक्न पर हज़्फ़ जिहाफ़ के अमल के बाद जो परिवर्तित रुक बरामद होगी उस रुक्न को ; महज़ूफ़’ कहते है। उसी प्र्कार
क़स्र ज़िहाफ़ के अमल से जो परिवर्तित रुक्न हासिल होगी उसे ’मक़्सूर’ कहते हैं
यानी
122+ हज़्फ़ = 12
122+ क़स्र = 121
अच्छा एक बात और
यह दोनों ज़िहाफ़ ख़ास ज़िहाफ़ कहलाते है और यह बह्र के आख़िरी मुक़ाम के सालिम रुक्न [ जर्ब/ अरूज़ के मुक़ाम ] पर ही अमल करते है।
अत: इस लिहाज़ से
122--122--122--12 का नाम होगा -: बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन महज़ूफ़
और
122---122--122--121 का नाम होगा ;- बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
अगर आप यहाँ तक सन्तुष्ट हैं तो फिर आगे पढ़ने की ज़रूरत नहीं } इतने से ही आप का काम चल जाएगा।
- अगर आप इतने से सन्तुष्ट नही है तो आगे बढ़्ते है ---
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--- हज़्फ़ ज़िहाफ़ कैसे अमल करता है?
अगर किसी सालिम रुक्न में आख़िरी जुज [ टुकडा सबब ए ख़फ़ीफ़ हो यानी 2 पर गिर रहा हो ] तो उसको मिटा देने ,गिरा देने को हज़्फ़ का अमल कहते है
हज़्फ़ का शब्दकोशीय अर्थ ही होता है---विच्छेद कर देना, अलग कर देना किसी शब्द से एक अक्षर कम कर देना\
[ सबब-ए-ख़फ़ीफ़, वतद-ए-मज्मुआ आप किसी अरूज़ की किताब से ्बआसानी पढ़ सकते है और नहीं तो मेरे ब्लाग
www.arooz.co.in ---पर देख सकते है।
122 = फ़ऊ लुन् = लन् बोले तो [ अरूज़ की भाषा में ] सबब-ए-ख़फ़ीफ़ = हिंदी में बोले तो 2
अगर इस आखिरी वाले 2 को 122 से हटा दे या गिरा दें तो क्या बचेगा ? 12 बचेगा और क्या?
यही तो हज़्फ़ का अमल है और यही 12 तो महज़ूफ़ है 122 का ।
यानी
122--122---122---12 हुआ बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन महज़ूफ़।
अच्छा अब मक़्सूर की भी बात कर लेते हैं___
--- क़स्र ज़िहाफ़ कैसे अमल करता है ?
अगर किसी सालिम रुक्न के आख़िरी टुकड़ा सबब-ए-ख़फ़ीफ़ हो यानी 2 पर गिर रहा हो ] तो -लुन्-[ लाम् मुतहर्रिक + नून् साकिन ] के आख़िरी नून [न् ] को गिराना या मिटाना और इसके पहले
वाला जो लाम [ वह अभी मुतहर्रिक है] को साकिन [1] कर देना ही तो मक़सूर है ।
मक़्सूर का शब्दकोशीय माने ही होता है " छोटा किया गया, जो कम किया गया हो ह्रस्व किया गया हॊ ।
122 = फ़ऊ लुन् = लुन् बोले तो 2= यानी लाम मुतहर्रिक+ नून साकिन = यही तो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ है= नून को मिटा दे और लाम [ मुतहर्रिक को साकिन यानी- 1- कर दें]
तो क्या बचेगा ? 1 2 1 बचेगा और यही 121 सालिम रुक्न 122 की मक़्सूर शकल है।
यानी
122---122---122---121 का नाम -बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
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इस चर्चा को यही खत्म करता हूँ । हो सकता है कि यह चर्चा आप लोगों को बोझिल हो जाए, सरदर्द पैदा कर दे. अरूज़ के प्रति वितॄष्णा पैदा कर दे।
जो हो । मगर् अरूज़ है एक दिलचस्प विषय।
लेकिन जाते जाते एक सवाल छोड़ जाता हूँ-- बताइएगा
[अ] -8 सालिम अर्कान में ये दोनो ज़िहाफ़ किन किन सालिम रुक्न पर लग सकते है?
[ब] -क्या यह बह्र-ए-कामिल पर भी लग सकता है ?
[नोट --इस मंच केअसातिज़ा से गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़रमाएँ ताकि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूँ }
सादर
-आनन्द.पाठक-
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