Monday, July 1, 2024

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 103 : 2122---1212---2122--22 क्या यह एक बह्र हो सकती है ?

 सवाल : क्या 2122-- 1212-- 2122 --22 यह कोई बहर हो सकती है ? 🌹


उत्तर: किसी मंच पर मेरे एक मित्र ने उक्त प्रश्न किया। और मित्र ने अपनी एक ग़ज़ल भी इसी बह्र में पेश की ।
इस सवाल पर अन्य मित्रों ने अपनी अपनी राय भी रखी ब। जैसे -
1- एक मित्र ने इसे 2122---1212--112/22 के आस-पास की बात की
2- एक मित्र ने कहा- अरकान के एक ख़ास पैटर्न को हर मिसरे में दोहराना ही तो है। ये बात दीगर है कि ग़ैर रिवायती बहर में लय होगी या नहीं।
3- किसी ने कहा -बिलकुल [ हो सकती है ] । मगर उन्होने वज़ाहत नहीं फ़र्माई ।
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उत्तर - ऐसे सवाल से मुझे प्रसन्नता होती है कि इसी बहाने मुझे अपनी जानकारी को फिर से दुहराने और परखने का मौक़ा मिलता है ,
नए तरीके से सोचने का मौक़ा मिलता है।
चूँकि एक मित्र ने बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ की तरफ़ इशारा किया है तो इस बह्र को उसी नुक़्त-ए-नज़र देखते है कि क्या हो सकता है ।
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बह्र-ए- ख़फ़ीफ़ एक मुरक्कब बह्र है जिसके बुनियादी अर्कान निम्न लिखित हैं । यह बह्र सामान्य तौर पर ’ मुसद्दस’ रूप में ही प्रचलन में है, मक़्बूल है।
2122---2212---2122 =A--B--A
अरूज़ में एक व्यवस्था यह भी है [ कमाल अहमद सिद्दकी के अनुसार ] कि ऐसी बह्र जो A--B--A के फ़ार्म में हो अगर उसे मुसम्मन फ़ार्म में प्रयोग करना हो तो
A--B--A --B फ़ार्म मे प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि यह तरीक़ाआम प्रचलन में नहीं है ।

एक पल के लिए मान लीजिए कि इसका मुसम्मन फ़ार्म प्रयोग में लाते हैं तो --
बह्र की शक्ल होगी
--A------B------C------D
2122----2212---2122--2212 [ यानी बह्र--ए-ख़फ़ीफ़ मुसम्मन ]

ब -B- [ हस्व के मुक़ाम पर] और -D- [ अरूज़ और ज़र्ब के मुक़ाम पर ] मान्य ज़िहाफ़ लगाते है --देखते हैं क्या होता है।
-B- 2212 + खब्न = 1212 [ मख़्बून]---जो हस्व के मुक़ाम पर लाया जा सकता है , जो मुसद्दस शकल में आता भी है ।
-D- 2212 + हज़ज़ = 22 [ अहज़ या महज़ूज़ ] जो अरूज़/ज़र्ब मुक़ाम के लिए ख़ास है [ इसे हज़्फ़/महज़ूफ़ से confuse न कीजिएगा।
तो 2122---2212---2122---2212 की शकल ज़िहाफ़ के अमल के कारण हो जाएगी
2122---1212---2212---22-यही वह बह्र है -जिसे मित्र ने शंका निवारण के लिए पूछा है।
इसका नाम होगा-बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसम्मन मख़्बून महज़ूज़ -
यह बात अलग है की यह बहुत आम बह्र नहीं है ।बहुत प्रचलन में नही है --बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस के मुक़ाबिल। चूँकि यह अरूज़ के क़ायदे क़ानून के मुताबिक़
बरामद हुई है सो यह मान्य बह्र हो सकती है और इसमे शायरी की जा सकती है अगर आप कर सकते हैं तो ।
इस लेख का उद्देश्य मात्र यह है कि अरूज़ इस विषय पर क्या बोलता है --पाठकों को स्पष्ट हो सके ।

[इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर इस हक़ीर फ़क़ीर से कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो बराए मेहरबानी
निशानदिही फ़रमाए कि यह राकिम आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सके ।
सादर

-आनन्द.पाठक-

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