क़िस्त 105: इज़ाफ़त में क्रिया का निर्धारण
[ अतिरिक्त जानकारी के लिए आप क़िस्त 70--80---81 भी देख सकते हैं ]
पिछले क़िस्तों [ मसलन क़िस्त 70---क़िस्त 80---क़िस्त 81 ] में इज़ाफ़त और अत्फ़ के बारे में विस्तार से चर्चा कर चुका हूँ।
आशा करता हूँ इज़ाफ़त और अत्फ़ क्या है, उर्दू शायरी में इनका क्या महत्व या क्या ज़रूरत है -कुछ हद तक आप लोगो ने समझ लिया होगा।
फिर भी संक्षेप में बता दूं कि दर्द-ए-दिल --ग़म-ए-इश्क़---वहशत-ए-दिल ---पैग़ाम-ए-हक़---ख़ाक-ए-वतन---बाम-ए-फ़लक--जल्वा-ए-हुस्न-ए-अजल --जू-ए-आब---राह-ए-मुहब्बत--- बहर-ए-बेकरां----कू-ए-उलफ़त--दर्द-ए-निहाँ --दिल-ए-नादां ---दौर-ए-हाज़िर -बर्ग-ए-गुल - बाद-ए-बहार---चिराग-ए-सहर ---
जैसे युग्म शब्दों को इज़ाफ़त कहते हैं [ जिसे कसरा-ए-इज़ाफ़त भी कहते हैं}
अरबी में क़सरा [उर्दू में ज़ेर] --इसलिए कहते हैं कि ऐसे युग्म शब्द में -" पहले शब्द के आखिरी हर्फ़ के नीचे एक ज़ेर या कसरा की अलामत [निशान] लगा देते हैं । [उर्दू वाले -ए-नही लिखते ] हम हिंदी वाले -ए- लिख कर इसे जताते और बताते हैं। इस कसरा [ज़ेर] के प्रभाव से --वह आखिरी "हर्फ़’ मुतहर्रिक हो जाता है जो-1- का वज़न देता है। अगर उस आख़िरी हर्फ़ को खींच कर पढ़ेगे तो -2- का भी वज़न देगा
जैसे--गम-ए-दिल= 11 2 भी हो सकता है या 122 भी हो सकता है बह्र की माँग के अनुसार।
दिल-ए-नादाँ = 11 22 भी हो सकता है या 1222 भी हो सकता है बह्र की माँग के अनुसार।
यह फ़ारसी की तरक़ीब है और पुराने शायरों ने अमूमन सभी शायरों ने इसका प्रयोग किया है ख़ास तौर से ग़ालिब ने। आजकल हिंदी में इसका प्रयोग कम ही होता है और होता भी है तो कभी कभी तरकीब उलटी हो जाती है। ख़ैर।
आज हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि अगर दो शब्दों को जोड कर जो युग्म शब्द बनेगा तो वह कौन-सी क्रिया [ फ़े’ल] अनुसरण करेगी ? यानी क्रिया स्त्रीलिंग होगी कि पुल्लिंग होगी ?
हम जानते हैं कि शब्द या तो स्त्री लिंग [ मुअ’न्नस] होगा या पुल्लिंग [ मुज़क्कर] होगा ।
आज इसी पर चर्चा करेंगे।
दो शब्द जोड़ने पर 3-स्थितियाँ बन सकती है ।
स्थिति 1= अगर दोनो शब्द पुल्लिंग [ मुजक्कर] हों तो स्वभावत: क्रिया पुल्लिंग शब्द का अनुसरण करेगी। जैसे इस शे’र से स्पष्ट है
हिज्र की शब, नाल:-ए-दिल वो सदा देने लगे
सुनने वाले रात कटने की दवा देने लगे ।
-साक़िब लखनवी
नाल: = पुलिंग
दिल = पुल्लिंग
क्रिया = देने लगे-- पुल्लिंग
[ ऐसे ही आप बहुत से उदाहरण खोज सकते हैं}
स्थिति 2 = अगर दोनो शब्द स्त्री लिंग [ मुअ’न्नस] हो तॊ स्वभावत: क्रिया स्त्रीलिंग शब्द का अनुसरण करेगी । जैसे इन शे’रों से स्पष्ट है--
फिर आज आई थी इक मौज-ए-हवा-ए तरब
सुना गई है फ़साने इधर उधर के मुझे ।
-नासिर काज़मी-
मौज़ = स्त्रीलिंग
हवा = स्त्रीलिंग
क्रिया -= आई थी
[ ऐसे ही आप बहुत से उदाहरण खोज सकते हैं}
स्थिति 3= अगर एक शब्द पुल्लिंग हो और दूसरा शब्द स्त्री लिंग हो तो ? तब क्रिया पहले शब्द के लिंग के अनुसार अनु्सरण करेगी ]
मुझको मौज-ए-नफ़स देती है पैग़ाम-ए-अजल
लब उसी मौज़-ए-नफ़स से है नवा-पैरा तेरा । -
--इक़बाल
मौज़= स्त्रीलिंग
नफ़स=पुल्लिंग
क्रिया मौज़ के अनुसार --देती है-[स्त्रीलिंग]
चमन से रोता हुआ मौसम-ए-बहार गया
शबाब सैर को आया था, सोगवार गया ।
-इक़बाल
मौसम = पुल्लिंग
बहार = स्त्रीलिंग
क्रिया -मौसम- के अनुसार --रोता हुआ गया -।
शम्मअ-ए-मज़ार थी ,न कोई सोगवार था
तुम जिस पर रो रहे थे ये किसका मज़ार था।
-बेख़ुद देहलवी-
शम्मअ’ = स्त्रीलिंग
मज़ार = पुल्लिंग
क्रिया --शम्मअ’ के अनुसार --थी।]
{[ ऐसे ही आप बहुत से उदाहरण खोज सकते हैं}
और आप स्वत: चेक कर सकते हैं
उर्दू में कुछ शब्द ऐसे है जो दोनॊ लिंग में प्रयोग होते है जैसे-चर्चा --सोच
आप जो क्रिया लगाना चाहें } जैसे -आप की सोच/ आप का सोच
उनकी चर्चा/ उनका चर्चा --शब भर रहा चर्चा तेरा --
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
-अकबर इलाहाबादी-
आप लोगों से अनुरोध है कि अगर कहीं ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही फ़र्मा दें कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।
सादर
-आनन्द.पाठक
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