उर्दू बह्र पर एक बातचीत: क़िस्त 113 : बह्र 12122--12122---12122---12122 पर एक चर्चा ।
[ नोट- यह लेख उनके लिए है जो अरूज़ से दिलचस्पी रखते है और अरूज़ के बारे में मज़ीद मालूमात हासिल करना चाहते है]
आजकल हमारे बहुत से शायर मित्र निम्न लिखित बह्र में ग़ज़ले कह रहे हैं
12122---12122---12122---12122
पर कुछ लोग इस अर्कान का नाम तो लिख देते हैं पर बहुत से लोग इस बह्र का नाम नहीं लिखते।
आज इसी बह्र पर चर्चा करेंगे।
[क] 12122--12112--12122--12122
क्लासिकल अरूज़ में आप 7-हर्फ़ी सालिम अर्कान के बारे में ज़रूर जानते होंगे। जैसे मफ़ाईलुन[1222]--फ़ाइलातुन [2122]-
मुसतफ़ इलुन[2212]--मुतफ़ाइलुन [11212 ] -मुफ़ाइलतुन [12112--मफ़ऊलातु [2221] । सब का मात्रा भार 7 है
इन्हे अरूज़ की भाषा में ’सुबाई अर्कान ’ कहतें है। ये तमाम अर्कान एक वतद [ 3-हर्फ़ी कलमा] और दो सबब [ दो हर्फ़ी कलमा ] से मिल कर उसी के
मुखतलिफ़ arrangement से बनता है यानी 3-2-2 के टुकड़े से [7 हर्फ़]
जबकि 12122 एक 8-हर्फ़ी रुक्न है । तो क्या 8- हर्फ़ी[ हस्त हरूफ़ी] अर्कान भी हो सकते हैं ?
जी हाँ | अरूज़ के लिहाज़ से ज़रूर हो सकते है, अगर आप दो वतद [3-हर्फ़ी कलमा]+ एक सबब [2-हर्फ़ी कलमा ] के यानी 3-3-2 [8 हर्फ़ी] के मुखतलिफ़ arrangement से बन सकते हैं।
कमाल अहमद सिद्दक़ी साहब ने अपनी किताब’आहंग और अरूज़’ में इसे बना कर दिखाया भी है और इस पर चर्चा भी की है ।
उन्होने इस combination/arrangement से 6-अर्कान बनाए और इसके बाक़यदा नाम भी दिए , जिसमें से एक रुक्न बनाया
12122 = मफ़ा इला तुन= [ वतद+वतद+ सबब] = 3 +3 +2 =8= और इसको रुक्न-ए- जमील नाम भी दिया।
आज इसी रुक्न से बनने वाली बह्र की चर्चा करेंगे।
बाक़ी के पाँच अन्य 8-हर्फ़ी रुक्न की चर्चा बाद में कभी मुनासिब मुक़ाम पर करेंगे।
[ आशा करता हूँ कि आप लोग सबब-ए-ख़फ़ीफ़, सबब-ए-सकील, बतद-ए-मजमुआ,वतद-ए-मफ़रूक़ के बारे में ज़रूर जानते होंगे}
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[क] 12122---12122---12122---12122 यानी
मफ़ाइलातुन---मफ़ाइलातुन--मफ़ाइलातुन--मफ़ाइलातुन
और नाम होगा--बह्र-ए-जमील मुसम्मन सालिम
सवाल यह कि यह 8-हर्फ़ी रुक्न उतने प्रचलित क्यों न हो सके जितनी 7-हर्फ़ी रुक्न प्रचलन में है?
कारण जो भी हो।कालान्तर में 8-हर्फ़ी अर्कान से बनी नई बह्रे भॊ प्रचलन में आ सकती हैं अगर आम शायर इस बह्र में शायरी करने लगे। फ़िलहाल ऐसा कुछ होते हुए ख़ास दिखता तो नही ।
ख़ैर
यही arrangement - 7-हर्फ़ी रुक्न से भी हासिल हो सकता है। देखते है यही वज़न 7-हर्फ़ी अर्कान से कैसे बरामद किया जा सकता है ? देखते हैं।
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क्लासिकल अरूज़ में एक मुरक़्कब बह्र है ।
नाम है -बहर-ए-मुक्तज़िब- जिसका बुनियादी अर्कान होता है
2221--2212-[ दोनों 7-हर्फ़ी सुबाई अर्कान]
मफ़ऊलातु--मुसतफ़इलुन
[ एक दिलचस्प बात --हम जानते हैं कि मुक्तज़िब [ मफ़ऊलातु = 2221] एक सालिम रुक्न तो है मगर इस सालिम रुक्न से कोई ’सालिम बह्र’ नहीं बनती । क्यॊं?
क्यों नहीं बनती?बता सकते हैं आप?
ख़ैर सालिम बह्र नहीं बन सकती तो क्या! किसी मुरक्कब बह्र में तो आ ही सकता है । और यहाँ आ भी गया। मुक्तज़िब [2221] ।
इसी लिए इसीलिए इस मुरक़्कब बह्र का नाम है -बह्र-ए-मुक़्तज़िब।]
अगर इन अर्कान पर यानी 2221 और 2212 पर अगर कुछ ज़िहाफ़ का अमल करें तो-
2221+खब्न + रफ़अ’ = मख्बून मरफ़ूअ’ 121 = फ़ऊलु
2212+ख़ब्न + रफ़अ’ = मख़्बून मरफ़ूअ’ 112 = और इस पर अगर तस्कीन-ए-औसत का अमल कर दे तो
= मख्बून मरफ़ूअ’ मुसक्किन = 22 हासिल होगा ।
2221--2212 पर उक्त ज़िहाफ़ात के अमल के बाद इसकी मुसम्मन शकल बरामद होगी
121--22/ 121-22
और इसकी मुसम्मन मुज़ाइफ़ शक्ल होगी
121-22/121-22//121-22/121-22 यानी एक मिसरा में 8-रुकन और पूरे शे’र मे 16 रुक्न्न
यानी
[ख] 121-22/121-22/121-22/121-22
अब बह्र [क] और बह्र [ख] की तुलना कीजिए--
--दोनों का वज़न एक जैसा [ 32 मात्रा वज़न] मगर रुक्न की तरतीब /क्रम/दिखाने का तरीका अलग अलग
--बज़ाहिर दोनो के नाम अलग अलग है
--[क] 8-हर्फ़ी [ हस्त हरूफ़ी]रुक्न से हासिल होता है जो एक सालिम रुक्न है सालिम बह्र है।
--[ ख] 7-हर्फ़ी रुक्न यानी--सुबाई रुक्न से हासिल होता है जो एक मुरक़्क़ब बह्र है और मुज़ाहिफ़ बह्र है।
बह्र [ख] के बारे में एक दिलचस्प बात और--
यही वज़न बह्र-ए-मुतक़ारिब से भी बरामद हो सकती है और कुछ अरूज़ की किताबो मे दिखाया भी गया है मगर वह तरीका सही नही है। इस बात पर किसी और दिन चर्चा करेंगे।
एक दिलचस्प बात और --
बह्र-ए-रजज़ का एक मुज़ाहिफ़ वज़न
1212--212--122 यह भी होता है } वज़न के क्रम की तुलना कीजिए 12--22/ 121-22 से
इसीलिए मैं कहता हूँ कि जब भी आप वज़न लिखें तो 1 2 को सही क्रम में लिखे जिससे बह्र पहचानने में सुविधा हो। मात्र 12122112221-[ Haphazard way]--को किसी क्रम में लिख देने से ही कोई बह्र नहीं हो सकती ,न बन सकती है । बह्र बनाने के लिए ज़ुज का सही क्रम में होना ज़रूरी है जो अरूज़ के मान्य नियम क़ायदे क़ानून से बने हों।
सादर
-आनन्द.पाठक-
[ नोट : इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़रमाए जिससे यह हक़ीर खुद को दुरुस्त कर सके ।
बहुत उम्दा जानकारी
ReplyDeleteनवाज़िश आप की
ReplyDeleteआप बेहतरीन जानकारी देते हैं। आभार
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