क़िस्त 117 : बह्र-ए- हज़ज की एक मुज़ाहिफ़ बह्र की चर्चा
मेरे एक मित्र ने कुछ नामचीं शायरो के चन्द अश’आर पेश किए और जानना चाहा कि इनकी बह्र क्या है ?
;1:
बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नही
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं
-राहत इन्दौरी-
[ नोट -- ये दुनिया है *उधर* जाने का नहीं --होता तो बेहतर होता। उर्दू के मूल स्क्रिप्ट में
-उधर- ही होगा जो हिंदी के लिप्यंतरण से यह दोष उत्पन्न हो गया। उर्दू मे इधर-उधर. इसका-उसका.
इन्हे-उन्हे दोनो का इमला एक सा है। फ़र्क सिर्फ़ ’अलिफ़’ के ऊपर हरकत [ ज़ेर-पेश] का होता है जिसे उर्दू
वाले सीरियसली नही लगाते और हम हिंदी वाले लिप्यंतरण में यह ग़लती कर बैठते है। ख़ैर
:2:
थकान औरों पे हावी है मिरी
रिहाई अब ज़रूरी है मिरी
बहुत संजीदगी दरकार है
हँसी भी छूट सकती है मिरी
-नामालूम-
:3:
यहाँ यूँ ही नहीं पहुँचा हूँ मै
मुसल्सल रात दिन दौड़ा हूँ मैं
-फ़हमी बदायूनी
:4:
ख़ुदा को भूलना आसान है
हमारा मसअला इंसान है ।
-फ़हमी बदायूनी-
अगर इन तमाम अश’आर की तक़्तीअ’ करे तो वज़न उतरता है
1222--1222-12
और अर्कान है
मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन-फ़े अ’ल
कुछ किताबों में इस बह्र का नाम दिया है--
1-बह्र-ए-हज़ज मुसद्दस सालिम मजबूब । इस आधार पर कि आख़िरी रुक्न [ अरूज़/जर्ब के मुकाम पर] ’जब्ब’ का ज़िहाफ़ लगा है जो मुज़ाहिफ़ मजबूब हो गया
कुछ किताबों में इस बह्र का नाम दिया है
2- बह्र-ए-हज़ज मुसद्दस सालिम अब्तर मक़्बूज़ । इस आधार पर कि आख़िरी रुक्न[ अरूज़/जर्ब के मुकाम पर] [ बतर+ कब्ज़] का ज़िहाफ़ लगा है। जो ’अबतर मक़्बूज़’ हो गया।
मैं व्यक्तिगत रूप से इस दूसरे नाम से इत्तिफ़ाक़ रखता हूँ।
कारण?
कारण यह कि -
मुफ़ाईलुन [1222] में ’मुआ’कबा’ की क़ैद है।
मुआ’कबा -के बारे मे मैने अपने ब्लाग पर चर्चा की है जिसका लिंक है--
https://www.arooz.co.in/2024/12/112-3-riders-restrictions.html
संक्षेप में मुआ’कबा की क़ैद यह है कि --अगर किसी रुक्न में [ यहाँ 1222] मे दो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ एक साथ आ जाए [यहां~ आखिरी 2 2 ] तो दोनो एक साथ साकित
नहीं हो सकते । जब कि ’जब्ब:’ आख़िरी 22 को साकित कर देता है और 12 बचता है जो मुआ’कबा की खिलाफ़वर्जी होगी। इसलिए मैं उसका समर्थक नहीं।
जब कि [अबतर + कब्ज़ ] के अमल से भी 12 बरामद होता है और यह मुआकबा की खिलाफ़वर्जी भी नही करता।
एक बात और
राहत साहब का रदीफ़-का नहीं - का वज़न 12 पर लिया है । कारण -का- तो ख़ैर -1- पर हो सकता है [ मात्रा पतन के कारण] मगर -नहीं-?
-नहीं -यहाँ -2- पर लिया गया है। कारण ? जहाँ तक मुझे याद है कि इस मिसरा को पढ़ते समय राहत साहब ने एक वज़ाहत फ़रमाई थी कि- नहीं- को फ़ारसी शब्द
-नै-या नइ- [ नहीं-शब्द का विकल्प] के वज़न -2- पर लिया है।
[ नोट : इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़रमाए जिससे यह हक़ीर खुद को दुरुस्त कर सके ।
-आनन्द.पाठक-
88009 27181