उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 115 : 11212+122 की बह्र पर एक चर्चा
किसी मंच पर मेरे एक मित्र ने 12 मुरक़्कब बह्रों का नाम लिखा था और अन्त में एक सवाल भी किया था।
सवाल यह था कि -
:[मुतफ़ाईलुन , फ़ऊलुन ]यानी [ 11212+ 122 ] बह्र में भी ग़ज़ल देखी है। ये भी सालिम मुरक़्कब है लेकिन इनका ज़िक्र किताबोंमें 12[ बारह] मुरक़्क़ब बह्र के साथ क्यों नहीं है ? कोई बताए।
[नोट : इन बारह[12] मुरकक़ब बह्रों के बारे में मैने भी अपने इसी ब्लाग पर क़िस्त 22 [ शायरी में प्रचलित बह्रें] में चर्चा की हैं । आप चाहें तो वहाँ देख सकते है।
ळिंक नीचे लगा दिया है--
https://www.arooz.co.in/2020/05/22.html
इस के जवाब में एक मित्र ने किसी किताब का उद्धरण पेश किया -" मुरक़्कब बह्रों की मूल बह्र का उपयोग हिंदी भाषा की ग़ज़ल में न के बराबर होता है इनकी उप-बह्रें ही प्रचलित हैं।
मुझे यह उत्तर प्रथम मित्र के सवाल के संदर्भ में बहुत सही नहीं लगा।
एक बात।
किसी बह्र का चलन में होना न होना एक बात है और बह्र का होना न होना अलग बात है।
अगर कोई बह्र अरूज़ के क़ायदे के मुताबिक़ हो सकती है या बन सकती है तो बन सकती है। प्रचलन में होना न होना ,बह्र की कसौटॊ नहीं हो सकता। प्रचलन में तो
बह्र-ए-वाफ़िर भी नहीं है या कम है अगर कोई बह्र-ए-वाफ़िर में शायरी करना चाहे तो कर सकता कोई मनाही नहीं। लोग क्यॊ नहीं करते --पता नहीं।
दूसरी बात।
किसी भी अरूज़ की किताब में [ तवालत के मद्द-ए-नज़र मुमकिनात [ संभावित] सालिम बह्र, मुज़ाहिफ़ बह्र [ मुज़ाइफ़ बह्र सहित] की चर्चा यकजा नहीं हो सकती
अरूज़ में कायदे कानून की ही चर्चा होती है । बह्र बनाना अमल में लाना न लाना, शायरी करना न करना तो शायर के ऊपर निर्भर करता है। ख़ैर।
मित्र के सवाल के जवाब में, एक जवाब अपनी समझ के अनुसार पेश करने की कोशिश करता हूँ।
11212-122 यूँ तो देखने में दो सालिम रुक्न से बनी हुई कोई मुरक़्कब बह्र लगती है मगर यह हैं नहीं। यह बह्र-ए-कामिल की एक मुज़ाहिफ़ बह्र है।
शायद इसीलिए इसे उन 12[ बारह] मुरक़्कब बह्रों के साथ नहीं लिया गया होगा।
11212--122 मुज़ाहिफ़ बह्र कैसे ?
मुतफ़ाइलुन [11212] पर ज़िहाफ़ "वक्स" और ’क़त’अ लगा कर देखते है
11212+ वक़्स + क़त’अ = मुज़ाहिफ़ मौक़ूस मक़्तूअ’ 122 [ फ़ऊलुन ]
यानी
11212 - 122 = बह्र-ए-कामिल मौक़ूस मक्तूअ’ हुआ जो कि एक मुज़ाहिफ़ [ ज़िहाफ़ शुदा बह्र] बह्र है न कि मुरक़्कब बह्र।
नोट : मंच के असातिज़ा से अनुरोध है कि अगर कहीं कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़र्माएँ कि मैं आइन्दा ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं~।
्सादर
-आनन्द पाठक
No comments:
Post a Comment