उर्दू बह्र पर एक बातचीत: क़िस्त 116 : मुरब्ब: शे’र बनाम मुसम्मन शे’र -एक चर्चा
जो शायरी करते है या ग़ज़ल कहते हैं वह ’ मुरब्ब:’ और ’मुसम्मन’ शब्द से ज़रूर वाक़िफ़ होंगे कि उनके अश’आर मुरब्ब: की सूरत है या कि मुसम्मन की सूरत हैं।
मुरब्ब: शब्द अरबी के ’अर्ब’अ’ शब्द से बना है जिसके मा’नी होता है चार या चार की संख्या। इसी शब्द से ’रुबाई’ [ शायरी की एक विधा] शब्द भी बना है जिसके मा’नी होता है --चार लाइनों वाला सुखन। ख़ैर
मुरब्ब: - शब्द का अर्थ होता है --4 या 4- की संख्या। यानी किसी शे’र में 4-रुक्न [ यानी मिसरा में 2-ही रुक्न ] का इस्तेमाल हुआ हो। A--D
मुसम्मन -शब्द का अर्थ होता है --8 या 8 की संख्या। यानी किसी शे’र में 8- रुक्न [ मिसरा मे 4 हीरुक्न ] का इस्तेमाल हुआ हो | A--B---C--D
मुज़ाइफ़ -- शब्द का अर्थ होता है --किसी चीज को दो-गुना किया हुआ ।[ ध्यान रहे यह शब्द :मुज़ाइफ़’: -[ इ-पर ध्यान दें] है -मुज़ाहिफ़ नहीं [ मुज़ाहिफ़ माने होता है किसी रुक्न पर "ज़िहाफ़" लगा हुआ। -ह- पर ध्यान दें।
मुरब्ब: मुज़ाइफ़ -- शब्द का अर्थ होगा --8-रुक्नी शे’र [ यानी मिसरा में 4- रुक्न ]। यही परिभाषा तो ’ मुसम्मन ’ का भी है
तो सवाल यह है :-
-- क्या मुरब्ब: मुजाइफ़ को हम मुसम्मन कह सकते हैं?
-- यह 8- रुक्नी शे’र देख कर हम कैसे पता करें कि कोई शे’र ’ मुसम्मन’ है या मुरब्ब: मुज़ाइफ़ है?
Any idea? any clue? any उपाय ?
इस पर कुछ सदस्यों ने अपनी राय ज़ाहिर की। मगए जवाब बहुत संतोष जनक नहीं था। ख़ैर
---सबसे आसान उपाय तो यह कि शायर महोदय खुद ही बता दें कि उन्होने किस बह्र में शायरी की है-मुसम्मन में या मुरब्ब: मुज़ाइफ़ में । so simple|
--एक मित्र ने ने हिंट दिया कि
A--B // a-b को देख कर कि B मुकाम पर के लफ़्ज़ का कोई हर्फ़ b मुक़ाम पर spill over न हो तो मुरब्ब: मुज़ाहिफ़।
मगर यह जवाब भी बहुत संतोषजनक नहीं है। शायर अपनी ग़ज़ल में --//-- की अलामत नहीं दिखाता कि पता लग सके। लिखने वाले तो ख़ैर बह्र और वज़न भी नही लिखते दिखाते।
और इस केस में --//-- [ मुरब्ब: मुज़ाइफ़ केस में ] यह बह्र शिकस्ता की अलामत नहीं --यह तो लाज़मी अरूजी वक़्फ़ा [ ठहराव] की अलामत ] है
दूसरी बात मुसम्मन केस में कभी कभी प्रयुक्त लफ़्ज़ B पर ही खत्म हो जाता है कोई हर्फ़ b मुक़ाम पर spill over नही होता । कन्फ़्यूजन फिर भी रहेगा।
तब ? कुछ नही। --तीसरा उपाय देखते हैं।
इससे पहले कुछ बुनियादी बातें कर लेते है। शे’र में अर्कान के मुकाम के हिसाब से उनके नाम
मुसम्मन = सदर/इब्तिदा --हस्व--हस्व--अरूज़/ज़र्ब =यानॊ दो-हस्व= A--B--C--D
मुसद्दस = सदर/इब्तिदा --हस्व--अरूज़/ज़र्ब = यानी एक-हस्व= A--B--D
मुरब्ब: =सदर/इब्तिदा --अरूज़/ज़र्ब = यानी नो हस्व = A--D यानी मुरब्ब: में हस्व का मुक़ाम नही होता। सीधे सदर--अरूज़ ही होता है।
अच्छा
यह तो आप जानते होंगे कि कुछ ख़ास ज़िहाफ़ात के अमल से आखिरी रुक्न [ यानी अरूज़/ज़र्ब के मुकाम पर] एक हर्फ़ [ साकिन ] बढ़ जाता है जैसे-
मफ़ाइलान [ 12121]--मफ़ऊलान [2221] --फ़अ’लान [221] --आदि
और आप यह भी जानते होंगे कि किसी मिसरा के आख़िर में एक हर्फ़ [साकिन] बढ़ाया जा सकता है और बढ़ाने से बह्र पर कोई असर नहीं पड़ता।
अच्छा--यह सुविधा --सिर्फ़ D मुक़ाम के लिए उपलब्ध है B-और C-- मुक़ाम के लिए नही
यानी मुरब्ब: मुज़ाहिफ़ में A--D //A--D पर उपलब्ध है -[ यानी दो जगह उपलब्ध होगी यानी शे’र के बीच में भी उपलब्ध होगी
जब कि मुसम्मन में सिर्फ़ एक जगह उपलब्ध होगी और वह भी आख़िरी रुक्न पर।
अत: जब आप को मुसम्मन शे’र की तक़्तीअ करते समय बीच में [ मिडिल -D के मुकाम पर] एक हर्फ़ [साकिन] ज़ियादे मिले तो समझिए कि वह मुरब्ब: मुज़ाइफ़ है। वरना तो
दोनो में अन्तर करना ज़रा मुशकिल होगा।
चलते चलते --
निकाते-अरूज़ अपनी जगह
और शायरी अपनी जगह ।
[ नोट : इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़रमाए जिससे यह हक़ीर खुद को दुरुस्त कर सके ।
सादर
-आनन्द .पाठक-
8800927181
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