Tuesday, February 25, 2025

उर्दू बह्र पर एक बातचीत: क़िस्त 116 :मुरब्ब: शे’र बनाम मुसम्मन शे’र --एक चर्चा

 उर्दू बह्र पर एक बातचीत: क़िस्त  116 : मुरब्ब: शे’र बनाम मुसम्मन शे’र -एक चर्चा

     जो शायरी करते है या ग़ज़ल कहते हैं वह ’ मुरब्ब:’ और ’मुसम्मन’ शब्द से ज़रूर वाक़िफ़ होंगे कि उनके अश’आर मुरब्ब: की सूरत  है या कि मुसम्मन की सूरत हैं।

मुरब्ब: शब्द अरबी के ’अर्ब’अ’ शब्द से बना है जिसके मा’नी होता है चार या चार की संख्या। इसी शब्द से ’रुबाई’ [ शायरी की एक विधा] शब्द भी बना है जिसके मा’नी होता है --चार लाइनों वाला सुखन। ख़ैर 

मुरब्ब: - शब्द का अर्थ होता है --4 या 4- की संख्या। यानी किसी शे’र में 4-रुक्न [ यानी मिसरा में 2-ही रुक्न ] का इस्तेमाल हुआ हो। A--D

मुसम्मन -शब्द का अर्थ होता है --8 या 8 की संख्या। यानी किसी शे’र में 8- रुक्न [ मिसरा मे 4 हीरुक्न ] का इस्तेमाल हुआ हो | A--B---C--D

मुज़ाइफ़ -- शब्द का अर्थ होता है --किसी चीज को दो-गुना किया हुआ ।[ ध्यान रहे यह शब्द :मुज़ाइफ़’: -[ इ-पर ध्यान दें] है -मुज़ाहिफ़ नहीं  [ मुज़ाहिफ़ माने होता है किसी रुक्न पर "ज़िहाफ़" लगा हुआ। -ह- पर ध्यान दें। 

मुरब्ब: मुज़ाइफ़ -- शब्द का अर्थ होगा --8-रुक्नी शे’र [ यानी मिसरा में 4- रुक्न ]। यही परिभाषा तो ’ मुसम्मन ’ का भी है

तो सवाल यह है :-

-- क्या मुरब्ब: मुजाइफ़ को हम मुसम्मन कह सकते हैं?

-- यह 8- रुक्नी शे’र देख कर हम कैसे पता करें कि कोई शे’र ’ मुसम्मन’ है या मुरब्ब: मुज़ाइफ़ है?

Any idea? any clue? any उपाय ?

  इस पर कुछ सदस्यों ने अपनी  राय ज़ाहिर की। मगए जवाब बहुत संतोष जनक नहीं था। ख़ैर

---सबसे आसान उपाय तो यह कि शायर महोदय खुद ही बता दें कि उन्होने किस बह्र में शायरी की है-मुसम्मन में या मुरब्ब: मुज़ाइफ़ में । so simple|

--एक मित्र ने ने हिंट दिया कि 

     A--B // a-b  को देख कर कि B मुकाम पर के लफ़्ज़ का कोई हर्फ़ b मुक़ाम पर spill over न हो तो मुरब्ब: मुज़ाहिफ़।

  मगर यह जवाब भी बहुत संतोषजनक नहीं है। शायर अपनी ग़ज़ल में --//-- की अलामत नहीं दिखाता कि पता लग सके। लिखने वाले तो ख़ैर बह्र और वज़न भी नही लिखते दिखाते। 

   और इस केस में --//-- [ मुरब्ब: मुज़ाइफ़ केस में ] यह बह्र शिकस्ता की अलामत  नहीं --यह तो लाज़मी अरूजी वक़्फ़ा [ ठहराव] की अलामत ] है

दूसरी बात मुसम्मन केस में कभी कभी  प्रयुक्त लफ़्ज़ B पर ही खत्म हो जाता है कोई हर्फ़ b मुक़ाम पर spill over नही होता । कन्फ़्यूजन फिर भी रहेगा।

तब ? कुछ नही। --तीसरा उपाय देखते हैं।

इससे पहले कुछ बुनियादी बातें कर लेते है। शे’र में अर्कान के मुकाम के हिसाब से उनके नाम

मुसम्मन = सदर/इब्तिदा --हस्व--हस्व--अरूज़/ज़र्ब     =यानॊ दो-हस्व= A--B--C--D

मुसद्दस = सदर/इब्तिदा --हस्व--अरूज़/ज़र्ब  = यानी एक-हस्व= A--B--D

मुरब्ब:  =सदर/इब्तिदा --अरूज़/ज़र्ब  = यानी नो हस्व = A--D यानी मुरब्ब: में हस्व का मुक़ाम नही होता। सीधे सदर--अरूज़ ही होता है।

अच्छा 

यह तो आप जानते होंगे कि कुछ  ख़ास ज़िहाफ़ात के अमल से आखिरी रुक्न [ यानी अरूज़/ज़र्ब के मुकाम पर] एक हर्फ़ [ साकिन ] बढ़ जाता है जैसे-

मफ़ाइलान [ 12121]--मफ़ऊलान [2221] --फ़अ’लान [221] --आदि

और आप यह भी जानते होंगे कि किसी मिसरा के आख़िर में एक हर्फ़ [साकिन] बढ़ाया जा सकता है और बढ़ाने से बह्र पर कोई असर नहीं पड़ता।

अच्छा--यह सुविधा --सिर्फ़ D मुक़ाम के लिए उपलब्ध है B-और C-- मुक़ाम के लिए नही

  यानी मुरब्ब: मुज़ाहिफ़ में  A--D  //A--D   पर उपलब्ध है -[ यानी दो जगह उपलब्ध होगी यानी शे’र के बीच में भी उपलब्ध होगी 

जब कि मुसम्मन में सिर्फ़ एक जगह  उपलब्ध होगी और वह भी आख़िरी रुक्न पर।

अत: जब आप को मुसम्मन शे’र की   तक़्तीअ करते समय बीच में [ मिडिल -D  के मुकाम पर] एक हर्फ़ [साकिन] ज़ियादे मिले तो समझिए कि वह मुरब्ब: मुज़ाइफ़ है। वरना तो

दोनो में अन्तर करना ज़रा मुशकिल होगा।

चलते चलते  --

निकाते-अरूज़ अपनी जगह

और शायरी अपनी  जगह ।

[ नोट : इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़रमाए जिससे यह हक़ीर खुद को दुरुस्त कर सके ।

सादर

-आनन्द .पाठक- 

8800927181


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