Wednesday, February 26, 2025

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 117: बह्र-ए-हज़ज की एक मुज़ाहिफ़ बह्र की चर्चा

 क़िस्त 117 : बह्र-ए- हज़ज की एक मुज़ाहिफ़ बह्र की चर्चा 


मेरे एक मित्र ने कुछ नामचीं शायरो के चन्द अश’आर  पेश किए और जानना चाहा कि इनकी बह्र क्या है ?

;1:

बुलाती है मगर जाने का नहीं

ये दुनिया है इधर जाने का नही


मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर

मगर हद से गुज़र जाने का नहीं

-राहत इन्दौरी-

[ नोट -- ये दुनिया है *उधर* जाने का नहीं --होता तो बेहतर होता। उर्दू के मूल  स्क्रिप्ट में 

-उधर- ही होगा जो हिंदी के लिप्यंतरण से यह दोष उत्पन्न हो गया। उर्दू मे इधर-उधर. इसका-उसका.

इन्हे-उन्हे दोनो का इमला एक सा है। फ़र्क सिर्फ़ ’अलिफ़’ के ऊपर हरकत [ ज़ेर-पेश] का होता है जिसे उर्दू

वाले सीरियसली नही लगाते और हम हिंदी वाले लिप्यंतरण में यह ग़लती कर बैठते है। ख़ैर

:2: 

थकान औरों पे हावी है मिरी

रिहाई अब ज़रूरी है मिरी 


बहुत संजीदगी दरकार है

हँसी भी छूट सकती है मिरी 

-नामालूम-

:3:

यहाँ यूँ ही नहीं पहुँचा हूँ मै

मुसल्सल रात दिन दौड़ा हूँ मैं

-फ़हमी बदायूनी

:4:

ख़ुदा को भूलना आसान है

हमारा मसअला इंसान है ।

-फ़हमी बदायूनी-

अगर इन तमाम अश’आर की तक़्तीअ’ करे तो वज़न उतरता है

1222--1222-12

और अर्कान है 

मुफ़ाईलुन--मुफ़ाईलुन-फ़े अ’ल

कुछ किताबों में इस बह्र का नाम दिया है--

1-बह्र-ए-हज़ज मुसद्दस सालिम मजबूब । इस आधार पर कि आख़िरी रुक्न [ अरूज़/जर्ब के मुकाम पर] ’जब्ब’ का ज़िहाफ़ लगा है जो मुज़ाहिफ़ मजबूब हो गया


कुछ किताबों में इस बह्र का नाम दिया है

2- बह्र-ए-हज़ज मुसद्दस सालिम अब्तर मक़्बूज़ । इस आधार पर कि आख़िरी रुक्न[ अरूज़/जर्ब के मुकाम पर] [ बतर+ कब्ज़] का ज़िहाफ़ लगा है। जो ’अबतर मक़्बूज़’ हो गया।

मैं व्यक्तिगत रूप  से इस दूसरे नाम से इत्तिफ़ाक़ रखता हूँ।

कारण? 

कारण यह कि -

मुफ़ाईलुन [1222] में ’मुआ’कबा’ की क़ैद है। 

मुआ’कबा -के बारे मे मैने अपने ब्लाग पर चर्चा की है जिसका लिंक है--

https://www.arooz.co.in/2024/12/112-3-riders-restrictions.html

संक्षेप में मुआ’कबा की क़ैद यह है कि --अगर किसी रुक्न में [ यहाँ 1222] मे दो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ एक साथ आ जाए [यहां~ आखिरी 2 2 ] तो दोनो एक साथ साकित

नहीं हो सकते । जब कि ’जब्ब:’ आख़िरी 22 को साकित कर देता है  और 12 बचता है जो मुआ’कबा की खिलाफ़वर्जी होगी। इसलिए मैं उसका समर्थक नहीं।

जब कि [अबतर + कब्ज़ ] के अमल से भी 12 बरामद होता है और यह मुआकबा की खिलाफ़वर्जी भी नही करता।

एक बात और

राहत साहब का  रदीफ़-का नहीं - का वज़न 12 पर लिया है । कारण -का- तो ख़ैर -1- पर हो सकता है [ मात्रा पतन के कारण] मगर -नहीं-?

-नहीं -यहाँ -2- पर लिया गया है। कारण ? जहाँ तक मुझे याद है कि इस मिसरा को पढ़ते समय राहत साहब ने एक वज़ाहत फ़रमाई थी कि- नहीं- को फ़ारसी शब्द

-नै-या नइ- [ नहीं-शब्द का विकल्प] के वज़न -2- पर लिया है।

[ नोट : इस मंच के असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लत बयानी हो गई हो तो निशानदिही ज़रूर फ़रमाए जिससे यह हक़ीर खुद को दुरुस्त कर सके ।


-आनन्द.पाठक-

88009 27181







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